Saturday, May 4, 2024
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ध्रुव तारा की एतिहासिक कहानी- Dhruva Tara Kahani In Hindi

ध्रुव तारा की एतिहासिक कहानी- इस कहानी के अनुसार, ध्रुव एक राजकुमार थे जो भगवान विष्णु के महान भक्त थे। वे राजा उत्तानपाद और रानी सुनीती के पुत्र थे। राजा उत्तानपाद की दूसरी पत्नी सुरुचि थी, जिसने ध्रुव को अपने पुत्र उत्तम के समान प्रेम नहीं दिया। एक दिन, जब ध्रुव पांच वर्ष के थे, तो उनकी सौतेली माँ ने उन्हें राजा के सिंहासन से उठा दिया और कहा कि वे इस योग्य नहीं हैं।

ध्रुव तारा क्या है?- What is the Dhruva Tara?

ध्रुव तारा की एतिहासिक कहानी – ध्रुव का जन्म राजा उत्तानपाद (स्वयंभुव मनु के पुत्र) और उनकी पत्नी सुनीति के पुत्र के रूप में हुआ था। राजा का एक और पुत्र उत्तम भी था, जो उनकी दूसरी रानी सुरुचि से पैदा हुआ था, जो उनके स्नेह की पसंदीदा वस्तु थी।

ध्रुव तारा की एतिहासिक कहानी- Dhruva Tara Kahani In Hindi 

ध्रुव को इन कठोर शब्दों से बहुत दुःख हुआ और उन्होंने अपनी माँ से शिकायत की। रानी सुनीती ने उन्हें सांत्वना देते हुए कहा कि वे यदि भगवान विष्णु की प्रार्थना करें तो वे उन्हें सबसे अधिक प्रेम देंगे। अगली सुबह, ध्रुव ने भगवान विष्णु के प्रति अपने मन में जगह बना ली और एक तपस्वी बनने का लक्ष्य रखा, और वे जंगल में चले गए। ध्रुव तारा की एतिहासिक कहानी

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जंगल में, ध्रुव की भेंट महर्षि नारद से हुई। नारद मुनि ने उन्हें निर्देश दिया कि वे इतने कम उम्र में इतनी कठोर तपस्या नहीं करें। परंतु, ध्रुव के दृढ़ संकल्प के लिए कोई भी सीमा बाधित नहीं थी। नारद मुनि ने उन्हें भगवान विष्णु का ध्यान करने के लिए आवश्यक अनुष्ठानों के निर्देश दिए। उन्होंने उन्हें “ओम नमो भगवते” मंत्र सिखाया और सिर्फ प्रार्थना करने का उपदेश दिया। ध्रुव ने छह महीनों तक भोजन और पानी का त्याग कर ध्यान और तपस्या शुरू की। हर कोई अचंभित था कि एक छोटा बच्चा इतने महीनों तक तपस्या कैसे कर रहा है। इंद्र देव ने पाताल से सर्पों को भेजकर ध्रुव की तपस्या में बाधा डालने की कोशिश की, लेकिन ध्रुव ने अपनी तपस्या जारी रखी।

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ध्रुव की तपस्या से प्रसन्न होकर, भगवान विष्णु ने उन्हें दर्शन दिए। उन्होंने ध्रुव को वरदान दिया कि वे हमेशा आकाश में एक तारे के रूप में रहेंगे और सभी दिशाओं में मार्गदर्शन करेंगे। ध्रुव को ध्रुव तारा के नाम से जाना जाता है। ध्रुव तारा हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण प्रतीक है। यह भक्ति, दृढ़ संकल्प और आध्यात्मिक उपलब्धि का प्रतीक है। ध्रुव तारे की कहानी हमें सिखाती है कि अगर हम भगवान में विश्वास रखें और दृढ़ संकल्प से उनकी भक्ति करें, तो हम किसी भी बाधा को पार कर सकते हैं।

ध्रुव तारे की कहानी को कई तरह से व्याख्या किया जा सकता है। एक व्याख्या यह है कि यह कहानी भक्ति के महत्व को बताती है। ध्रुव ने भगवान विष्णु के प्रति अपनी भक्ति के कारण ही इतनी कठोर तपस्या की और अंततः ध्रुव तारा बन गए। एक अन्य व्याख्या यह है कि यह कहानी दृढ़ संकल्प के महत्व को बताती है। ध्रुव ने अपनी तपस्या में बाधाओं का सामना किया, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। उन्होंने अपनी तपस्या जारी रखी और अंततः अपने लक्ष्य को प्राप्त किया। ध्रुव तारे की कहानी एक प्रेरणादायक कहानी है जो हमें सिखाती है कि अगर हम भगवान में विश्वास रखें और दृढ़ संकल्प से उनकी भक्ति करें, तो हम किसी भी बाधा को पार कर सकते हैं। ध्रुव तारा की एतिहासिक कहानी

ध्रुव तारे का नामकरण कैसे हुआ?

ध्रुव तारे का नामकरण दो कारणों से हुआ है। पहला कारण यह है कि यह तारा आकाश में स्थिर रहता है। ध्रुव तारे के चारों ओर अन्य तारे घूमते हैं, लेकिन ध्रुव तारा हमेशा एक ही स्थान पर रहता है। इसलिए, इसे “ध्रुव” या “ध्रुव तारा” कहा जाता है, जिसका अर्थ है “स्थिर”।

दूसरा कारण यह है कि ध्रुव तारा का उपयोग दिशा निर्देश के लिए किया जाता है। प्राचीन काल में, लोग ध्रुव तारे को देखकर अपने रास्ते का पता लगाते थे। इसलिए, इसे “ध्रुव” या “ध्रुव तारा” कहा जाता है, जिसका अर्थ है “मार्गदर्शक”। ध्रुव तारे का नामकरण हिंदू धर्म के पौराणिक ग्रंथों से भी जुड़ा हुआ है। हिंदू धर्म में, ध्रुव एक राजकुमार थे जो भगवान विष्णु के महान भक्त थे। उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर, भगवान विष्णु ने उन्हें वरदान दिया कि वे हमेशा आकाश में एक तारे के रूप में रहेंगे और सभी दिशाओं में मार्गदर्शन करेंगे। इस कहानी के अनुसार, ध्रुव तारा राजकुमार ध्रुव का ही अवतार है।

ध्रुव तारा की कहानी Dhruv Tara Story in Hindi

ध्रुव तारा की कहानी हिंदू धर्म के पौराणिक ग्रंथों में वर्णित है। इस कहानी के अनुसार, ध्रुव एक राजकुमार थे जो भगवान विष्णु के महान भक्त थे। वे राजा उत्तानपाद और रानी सुनीती के पुत्र थे। राजा उत्तानपाद की दूसरी पत्नी सुरुचि थी, जिसने ध्रुव को अपने पुत्र उत्तम के समान प्रेम नहीं दिया। एक दिन, जब ध्रुव पांच वर्ष के थे, तो उनकी सौतेली माँ ने उन्हें राजा के सिंहासन से उठा दिया और कहा कि वे इस योग्य नहीं हैं। ध्रुव को इन कठोर शब्दों से बहुत दुःख हुआ और उन्होंने अपनी माँ से शिकायत की। रानी सुनीती ने उन्हें सांत्वना देते हुए कहा कि वे यदि भगवान विष्णु की प्रार्थना करें तो वे उन्हें सबसे अधिक प्रेम देंगे। अगली सुबह, ध्रुव ने भगवान विष्णु के प्रति अपने मन में जगह बना ली और एक तपस्वी बनने का लक्ष्य रखा, और वे जंगल में चले गए। ध्रुव तारा की एतिहासिक कहानी- Dhruva Tara Kahani In Hindi

जंगल में, ध्रुव की भेंट महर्षि नारद से हुई। नारद मुनि ने उन्हें निर्देश दिया कि वे इतने कम उम्र में इतनी कठोर तपस्या नहीं करें। परंतु, ध्रुव के दृढ़ संकल्प के लिए कोई भी सीमा बाधित नहीं थी। नारद मुनि ने उन्हें भगवान विष्णु का ध्यान करने के लिए आवश्यक अनुष्ठानों के निर्देश दिए। उन्होंने उन्हें “ओम नमो भगवते” मंत्र सिखाया और सिर्फ प्रार्थना करने का उपदेश दिया। ध्रुव ने छह महीनों तक भोजन और पानी का त्याग कर ध्यान और तपस्या शुरू की। हर कोई अचंभित था कि एक छोटा बच्चा इतने महीनों तक तपस्या कैसे कर रहा है। इंद्र देव ने पाताल से सर्पों को भेजकर ध्रुव की तपस्या में बाधा डालने की कोशिश की, लेकिन ध्रुव ने अपनी तपस्या जारी रखी।

FAQs 

Q:- ध्रुव किसका बेटा था?

 सुनीति का पुत्र था।

Q:- ध्रुव की पत्नी कौन थी?

भ्रमि 

Q:- ध्रुव के भाई का नाम क्या था?

उत्तम

ध्रुव तारा की कहानी किसी लगी आप कमेंट में जरूर बताये और ऐसी कहानी पढ़ने के लिए दिए गयी लिंक पर क्लिक कीजिये
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