महाभारत युद्ध के रहस्य | Mahabharat Ke Rahasya In Hindi महाभारत युद्ध भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है जिसमें कौरवों और पांडवों के बीच हुए एक महा युद्ध का वर्णन किया गया है यह युद्ध एक प्रकार का धर्मयुद्ध माना जाता है, क्योंकि इसमें कई महत्वपूर्ण धार्मिक विचारों और उपदेशों का प्रस्तुतीकरण किया गया है। यहां अर्जुन ने कृष्ण से भगवद गीता के रूप में ज्ञान प्राप्त किया था। भीष्म की यह अकेली मृत्यु भी एक रहस्यपूर्ण घटना है। महाभारत युद्ध के रहस्य | Mahabharat Ke Rahasya In Hindi
वैदिक ज्योतिष और पराम्परिक कथाओं के अनुसार, भीष्म ने अपनी देह को इस वक्त छोड़ दिया जब मकर संक्रांति के बाद सूर्य और चंद्रमा एक साथ मकर राशि में आते हैं, जिसे ‘उत्तरायणी एकादशी’ के रूप में जाना जाता है युद्ध के अंत में, अश्वत्थामा ने पांडवों के परिवार के लोगों की हत्या की थी और उन्होंने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया था। इसके परिणामस्वरूप एक अद्भुत परिवर्तन हो गया था जिससे धृतराष्ट्र के परिवार में कई मृत्युदंड आये। अर्जुन के द्वारा किए गए अश्वत्थामा के प्रति प्रतिज्ञान के कारण जयद्रथ ने अभिमन्यु को रोकने के लिए अर्जुन के पराक्रम को देखते हुए अश्वत्थामा की मदद की और उन्होंने चंद्रकला नक्षत्र में सूर्य को छिपने दिया ताकि अर्जुन के बीच रात्रि का समय बढ़ जाए। इसके परिणामस्वरूप अर्जुन को चंद्रकला नक्षत्र में सूर्य को पुनः प्रकट करने के लिए दिव्य वस्त्रों की आवश्यकता पड़ी और इसके बाद ही जयद्रथ की मृत्यु हो सकी।
- दुर्योधन द्वारा अर्जुन को वरदान देना [Duryodhana told Arjuna to ask for a Boon] -:
महाभारत युद्ध के अंत में दुर्योधन की मृत्यु होती है। कुछ कथाओं में, उसकी मृत्यु के पश्चात् उसके शरीर को सजाने का कार्य भी यदि देखा जाता है। ये कुछ महाभारत युद्ध के रहस्य हैं जो लोगों के बीच आज भी उलझे हुए हैं। यहां पर दी गई जानकारी विभिन्न संस्कृति और कथाओं से ली गई है महाभारत में अर्जुन और दुर्योधन के बीच एक महत्वपूर्ण घटना आती है जिसमें अर्जुन ने दुर्योधन से एक वरदान की मांग की थी। यह घटना कुरुक्षेत्र युद्ध के पहले दिन की है, जब दोनों पक्षों के योद्धा युद्ध के लिए तैयार हो रहे थे। महाभारत युद्ध के रहस्य
अर्जुन और दुर्योधन दोनों ही कृष्ण से विशेष संबंध रखते थे। दुर्योधन ने कृष्ण से मद्र प्रदेश के शासक बनने के लिए मदद मांगी थी, जिसे कृष्ण ने माना नहीं था। वह चाहते थे कि कृष्ण उनकी सेना के पक्ष में खड़े हों, परंतु कृष्ण ने न्याय के प्रतिनिधि के रूप में उन्हें निष्पक्षता का पालन करने का संकल्प लिया था। वहीं, अर्जुन ने कृष्ण से अपने पक्ष के लिए मदद मांगी। उनका कहना था कि कृष्ण उनके सारथि बनकर उनके लिए युद्धभूमि में खड़े हों, ताकि वह उनके सहायक और मार्गदर्शक के रूप में उनके साथ रह सकें।
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इस पर, कृष्ण ने अपनी दोनों हाथों से विराजमान होकर उनके सामने खड़े हो जाने का संकेत दिया, जिससे दुर्योधन को आशा नहीं रही कि कृष्ण उनके पक्ष में खड़े होंगे। इस परिस्थिति में, अर्जुन ने दुर्योधन से एक विशेष वरदान मांगा कि कृष्ण केवल उनके पास ही स्थित रहें, परंतु दुर्योधन के पास नहीं रहें। यह वरदान अर्जुन की विवेकपूर्ण बुद्धि का प्रतिष्ठान था, क्योंकि वह समझते थे कि कृष्ण की मौजूदगी सिर्फ उनकी जीत की नहीं, बल्कि न्याय और धर्म की जीत की भी मानसिकता को दर्शाएगी। इस घटना से स्पष्ट होता है कि अर्जुन कृष्ण की दिव्यता और उनके धर्मीय दृष्टिकोण की मान्यता करते थे, जिससे वे धर्म और न्याय के प्रति अपने पक्ष की प्रतिबद्धता को प्रमोट करने का प्रयास करते थे।
- अर्जुन पुत्र इरावन का बलिदान और उसकी अंतिम इच्छा [Arjun’s Son Iravan sacrificed himselfand his last wish]
महाभारत में इरावन (अरवन) या ईरावत, अर्जुन के पुत्रों में से एक थे जिन्होंने कुरुक्षेत्र युद्ध में अपने पिता के पक्ष में युद्ध किया। उनकी माता का नाम उलूपी था, जो नागकन्या थी। युद्ध के 18वें दिन, जब महाभारत युद्ध में बहुत सारे महत्वपूर्ण योद्धा मारे जा चुके थे, अर्जुन के पुत्र इरावन को ब्रह्मास्त्र का ज्ञान था। उन्होंने आत्मसमर्पण के भाव से अपने पिता के पक्ष में युद्ध करने का निश्चय किया।
युद्ध के अंतिम दिन, जब युद्ध की स्थिति बहुत खराब हो चुकी थी और पांडवों की सेना को बचाने के लिए एक ब्रह्मास्त्र की आवश्यकता थी, अर्जुन ने इरावन से इसका प्रयोग करने की विनती की। इरावन तैयार हो गए और ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया। उन्होंने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया जो कि सेना के बचाव के लिए बहुत महत्वपूर्ण था।
लेकिन ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करने के परिणामस्वरूप इरावन का असमय मृत्यु हो गया। उनकी मृत्यु के पश्चात्, वे एक बड़े शक्तिशाली और दिव्य रूप में प्रकट हो गए जिसमें उन्होंने अपनी माता उलूपी को अपने अंतिम इच्छा बताई कि उन्हें उनकी मृत्यु के बाद उनके शरीर का देखभाल करने का तरीका बताएं। महाभारत युद्ध के रहस्य
इस घटना से स्पष्ट होता है कि इरावन ने आपने पिता के प्रति अपनी श्रद्धा और समर्पण का प्रदर्शन किया, और उनकी अंतिम इच्छा को पूरा करने के लिए वे तैयार रहे। इस घटना ने धर्म, आपकी परिप्रेक्ष्य और परिवार के प्रति समर्पण की महत्वपूर्ण मानसिकता को प्रकट किया।
- सहदेव द्वारा अपने पिता पांडु का मस्तिष्क खाना [Sahdeva ate his father’s brain]
महाभारत में, सहदेव पांडवों के पंच पुत्रों में से एक थे और वे नकुल के चचेरे भाई थे। इस कथा के अनुसार, दुर्योधन के आदेश के बाद जब पांडवों का अग्रणी दृष्टद्युम्न ने सेना को बदलकर अर्जुन के प्रतियोगिता के लिए उपस्थित होने के लिए नाकुल और सहदेव को बुलाया तो उन्होंने उनके प्रति अपनी निष्ठा और परिश्रम की महत्वपूर्णता को बताया।
यह कथा महाभारत में ‘नकुल और सहदेव का ब्रह्मण संदर्भ’ के रूप में प्रस्तुत की गई है और इसके अनुसार, द्रौपदी की स्वयंवर में पांडव ब्राह्मण वेष में छिपकर आए थे। सभी श्रेष्ठ योद्धा उनकी प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए उत्सुक थे, लेकिन दुर्योधन उन्हें बहिष्कृत करने का प्रयास कर रहा था। सहदेव ने अपने पिता पांडु के मस्तिष्क का वचन दिया क्योंकि वे जानते थे कि उनके पिता की सोच, ज्ञान और विवेक केवल योद्धा नहीं, बल्कि एक ब्राह्मण के समान भी उत्तम थे। उन्होंने यह दिखाने के लिए कि आदर्श व्यक्तियों के प्रति उनकी समर्पण और सम्मान की भावना कितनी महत्वपूर्ण होती है, वे अपने पिता के मस्तिष्क का वचन कर गए थे।
इस कथा से स्पष्ट होता है कि सहदेव ने अपने पिता के प्रति आदर्श और आचार्यों के प्रति समर्पण की महत्वपूर्णता को प्रमोट किया और उनकी निष्ठा का प्रतीक बने।
- भगवान बलराम अभिमन्यु के ससुर थे [Balram was Abhimanyu’s Father in law]
भगवान बलराम भगवान श्रीकृष्ण के भाई थे। वे यादव वंश के राजा वसुदेव और देवकी के पुत्र थे। उन्हें यदुवंशी भी कहा जाता है और वे महाभारत के कुछ हिस्सों में भी प्रमुख थे। अभिमन्यु पांडव योद्धा अर्जुन के पुत्र थे और उन्होंने महाभारत युद्ध में पांडव सेना के पक्ष में योगदान दिया था। महाभारत युद्ध के रहस्य