मणिकर्णिका घाट स्नान इतिहास –हेलो दोस्तों मेरा नाम मोहित है आज में आपको मणिकर्णिका घाट स्नान के बारे में बताने जा रहा हूँ मणिकर्णिका घाट एक पवित्र नदी का पवित्र घाट हैं जिसमे हिन्दू मान्यताओं के अनुसार स्नान का महत्व बताया जाता हैं क्यूँ हैं यह घाट पवित्र ? और कैसे इस घाट का नाम मणिकर्णिका पड़ा ? इस बात की जानकारी आगे दी गई हैं .
मणिकर्णिका घाट वाराणसी का बहुत प्रसिद्द घाट है. हिन्दू धर्म में इस घाट पर स्नान करना बहुत पुण्य का काम माना जाता हैं . काशी में यह एक सबसे प्रसिद्द शमशान घाट में से एक हैं, इस घाट पर वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन स्नान का महत्व हैं .
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मणिकर्णिका घाट स्नान महत्व इतिहास एवम पौराणिक कथा
मणिकर्णिका महशूर शमशान घाट में से एक है, यह समस्त भारत में प्रसिद्ध है. यहाँ पर शिव जी एवं माँ दुर्गा का प्रसिध्य मंदिर भी है, जिसका निर्माण मगध के राजा ने करवाया था. मणिकर्णिका घाट का इतिहास बहुत पुराना है. कई राज इस घाट से जुड़े हुए है. कहते है यहाँ कि चिता की आग कभी शांत नहीं होती है. हर रोज यहाँ 300 से ज्यादा मुर्दों को जलाया जाता है. यहाँ पर जलाये गए इन्सान को सीधे मोक्ष मिलता है.
मणिकर्णिका घाट पर जलाने के लिए पहले लोगों को पैसे देने पड़ते है, तब वहां पर चिता मुहैया कराई जाती है. यहाँ पर फ्री में कोई चिता नहीं जला सकता है. इस घाट में 3000 साल से भी ज्यादा समय से ये कार्य होते आ रहा है. बनारस के मणिकर्णिका घाट में अंतिम संस्कार का कार्य डोम जाति के द्वारा होता है. पहले लोग अपनी ख़ुशी से इनको दान दक्षिणा दे दिया करते थे. एक बार जब राजा हरीशचंद्र अपनी किसी प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए अपना राज-पाट छोड़, एक साधारण गरीब इन्सान की तरह जीवन व्यतीत कर रहे थे. उस समय उनके बेटे की मृत्यु हो गई, और मणिकर्णिका घाट में अंतिम संस्कार में दान देने के लिए भी उनके पास पैसे नहीं थे. तब उन्होंने अपनी पत्नी की साड़ी का टुकड़ा डोम जाति को दिया, जिसके बाद उनके बेटे का अंतिम संस्कार हो सका.
उस समय ये लोग मुंह मांगी कीमत नहीं मांगते थे, बल्कि जो कोई ख़ुशी से जो दे दे, वो रख लेते थे. समय के साथ इस परंपरा में बदलाव आ गया और डोम जाति के लोग इसे अपना हक और काम समझने लगे. धीरे धीरे लोगों ने इसे अपना धंधा बना लिया, और बाकायदा एक व्यवसाय की तरह काम करने लगे. डोम जाति के लोग अब इस घाट के चारों ओर फैले हुए है, जो आती जाती सभी शव यात्रा पर नजर लगाये रहते है. वे इन्हें देखकर समझ जाते है कि ये पैसे वाले है कि नहीं. फिर उसी हिसाब से चिता की कीमत लगाई जाती है. मरने के बाद भी लोग इन्सान को शांति से नहीं जाने देते. डोम जाति के लोग कहते है कि पहले के ज़माने में जब राजा महाराजा और बड़े आदमी की शव यात्रा यहाँ आती है, तो इन्हें बहुत बड़े-बड़े दान मिलते थे, लोग सोने-चांदी, जमीन इनके नाम कर देते थे. ऐसे ही बड़े आदमियों ने इनकी नीयत ख़राब कर दी है, जिसके बाद ये लोग इसे बड़े व्यवसाय के रूप में ही देखने लगे.
मणिकर्णिका घाट में दो ऐसी विचित्र बात होती है, जो इसे दुसरे शमशान घाट से अलग बनाती है.
मणिकर्णिका घाट में फाल्गुन माह की एकादशी के दिन चिता की राख से होली खेली जाती है. कहते है, इस दिन शिव के रूप विश्वनाथन बाबा, अपनी पत्नी पार्वती जी का गौना कराकर अपने देश लोटे थे. इनकी डोली जब यहाँ से गुजरती है
तो इस घाट के पास के सभी अघोरी बाबा लोग नाच गाने, रंगों से इनका स्वागत करते है. यह प्रथा अभी तक चली आ रही है. आज भी वहां बाबा मथान के मंदिर में अघौरी बाबा लोग चिता की राख, अबीर, गुलाल के साथ होली खेलते है, और बाबा की पूजा आराधना करते है. इसके साथ ही डमरू, नगाड़े के शोर के साथ हर हर महादेव की जय जय कार की जाती है.
मणिकर्णिका घाट स्नान इतिहास –इसके अलावा मणिकर्णिका घाट में चैत्र नवरात्री की अष्टमी के दिन वैश्या लोगों का विशेष नृत्य का कार्यक्रम होता है. यहाँ इन लोगों को किसी जोर जबरजस्ती या पैसे देकर नहीं बुलाया जाता है, बल्कि दूर-दूर से लोग खुद अपनी मर्जी से आती है. कहते है ऐसा करने से उन्हें इस जीवन में मुक्ति मिलती है, साथ ही उन्हें इस बात का दिलासा होता है कि अगले जन्म में वे वैश्या नहीं बनेंगी. यहाँ नाचना वे अपनी खुशनसीबी समझती है, साथ ही भगवान के सामने इस तरह नाचने में उन्हें ख़ुशी मिलती है.
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सुनने में थोडा अटपटा लगता है कि शमशान जैसी शांत जगह में ये लोग कैसे गानों में डांस कर सकती है. शमसान में मृत शरीर का अंतिम संस्कार होता है, ये उनके जीवन की अंतिम यात्रा होती है. लेकिन यह प्रथा कई सालों से चली आ रही है. बाबा मथान के मंदिर के बनने के बाद वहां एक राजा ने कार्यक्रम का आयोजन करवाया था, जिसके लिए देश-देश के कलाकारों को प्रस्तुति के लिए आमंत्रण दिए गए थे. लेकिन शमशान जैसी जगह में कोई भी प्रस्तुति देने से डर रहा था, ऐसे में राजा को अपनी बात किसी तरह पूरी करनी थी. तब उन्हें किसी ने वैश्या लोगों को बुलाने को बोला, राजा ने उन बदनाम गलियों में आमंत्रण भेजा, जिसे पाकर वे बहुत खुश हुई और उसे स्वीकार लिया. ये तभी से प्रथा चलती आ रही है
यह प्रथा टूटे न, इस बात का ध्यान मंदिर वाले रखते है. प्रशासन भी इसमें उनकी मदद करते है. मुंबई से बारगर्ल यहाँ आती है. यह प्रथा बनारस के इतिहास में बहुत फेमस है, कई देशी-विदेशी सेनानी इस दौरान वाराणसी जाकर इस कार्यक्रम को देखते है.
वाराणसी के प्रसिद्ध घाट –
1. | अस्सी घाट |
2. | चेत सिंह घाट |
3. | दरभंगा घाट |
4. | मानमंदिर घाट |
5. | दशाश्वमेध घाट |
6. | ललिता घाट |
7. | भोसले घाट |
8. | बचराज घाट |
9. | मुन्सी घाट |
10. | तुलसी घाट |
मणिकर्णिका स्नान 2023 में कब है
प्रति वर्ष वैकुण्ठ चतुर्दशी (कार्तिक माह शुक्ल पक्ष की चौदस) के दिन मणिकर्णिका घाट पर स्नान का महत्व बताया गया है, इस दिन घाट पर स्नान से पाप से मुक्ति मिलती हैं. इस वर्ष 2023 में यह स्नान 25 नवंबर को किया जायेगा .
मणिकर्णिका घाट में वैकुण्ठ चौदस के दिन श्रद्धालु रात्रि के तीसरे पहर स्नान करने आते हैं, कार्तिक माह का विशेष महत्त्व होने के कारण इस घाट पर भक्तों का ताता लगा रहता हैं .
मणिकर्णिका घाट का इतिहास
एक पौराणिक कथा के अनुसार जब माता सति ने अपने पिता के व्यवहार से नाराज होकर अपने आप को अग्नि में समर्पित कर दिया था . तब स्वयं शिव माता सति के शरीर को लेकर कैलाश पर जा रहे थे . तब उनके शरीर का एक एक हिस्सा पृथ्वी पर गिर रहा था . कहते हैं उन सभी स्थानों पर शक्ति पीठ की स्थापना की गई हैं इस प्रकार पृथ्वी पर 51 शक्ति पीठ हैं . उसी समय माता सति के कान का कुंडल वाराणसी के इस घाट पर गिर जाता हैं . तब ही से इस घाट को मणिकर्णिका के नाम से जाना जाता हैं .
मणिकर्णिका घाट स्नान इतिहास –इसके आलावा एक और कथा कही जाती हैं . एक समय जब भगवान शिव हजारो सालों की योग निंद्रा में थे, तब विष्णु जी ने अपने चक्र से एक कुंड को बनाया था जहाँ भगवान शिव ने तपस्या से उठने के बाद स्नान किया था और उस स्थान पर उनके कान का कुंडल खो गया था जो आज तक नहीं मिला . तब ही से उस कुंड का नाम मणिकर्णिका घाट पड़ गया .ऐसा कहा जाता हैं आज भी इस स्थान पर जिसका दाह संस्कार किया जाता हैं, उससे पूछा जाता हैं कि क्या उसने भगवान शिव के कान के कुंडल को देखा .
मणि कर्णिका घाट स्नान का महत्व
इस घाट पर हिन्दू धर्म के लोगो कू अंतेष्टि की जाती हैं कहते हैं एक बार इस स्थान पर दाह संस्कार किया जाता हैं तो उस चिता की अग्नि सदैव जलती रहती हैं . इस स्थान पर मुक्ति मिलने वाला व्यक्ति सीधे स्वर्ग लोक जाता हैं .मणि कर्णिका कुंड का निर्माण स्वयं भगवान विष्णु ने किया था इसे बहुत पवित्र स्थान माना जाता हैं .
यह घाट काशी में स्थित हैं इसमें स्नान से मनुष्य के पापो का नाश होता हैं कार्तिक में इसके स्नान का सर्वाधिक महत्व हैं . सबसे प्रसिद्ध श्मशान घाट के नाम से प्रसिद्ध हैं . हिन्दू धर्म में इसका विशेष महत्व हैं इसलिए कार्तिक में इस घाट पर भक्तो का मैला सा लग जाता हैं
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