विक्रम साराभाई का जीवन परिचय-हेलो दोस्तों मेरा नाम मोहित है आज में आपको विक्रम साराभाई के बारे में बताने जा रहा हु। आपने यह तो सुना ही होगा कि चंद्रयान – 2 मिशन में चंद्रमा पर उतारे जाने वाले रोवर का नाम विक्रम साराभाई रखा गया था. लेकिन क्या आप जानते हैं आखिर कौन है विक्रम साराभाई? तो हम आपको बता दें कि विक्रम साराभाई एक ऐसा नाम है, जिसे भारतीय अंतरिक्ष के प्रत्येक कार्यक्रमों में जनक की उपाधि दी गई है. इनके जीवन के बारे में पूरी जानकारी आज हम आपको देने वाले हैं.
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विक्रम साराभाई का जीवन परिचय Vikram Sarabhai Biography in Hindi
पूरा नाम | विक्रम अंबालाल साराभाई |
अन्य नाम | भारतीय अंतिरक्ष प्रोग्राम के पिता, भारतीय विज्ञान के पुनर्जागरण पुरुष |
पेशा | ब्रम्हांडीय किरण वैज्ञानिक, एष्ट्रोफिजिसिस्ट उद्योगपति |
जन्म | 12 अगस्त 1919 |
जन्म स्थान | अहमदाबाद, भारत |
मृत्यु | 30 दिसंबर, 1971 |
मृत्यु स्थान | थिरुवानंथापुरम, केरल, भारत |
उम्र | 52 साल |
मृत्यु का कारण | दिल का दौरा |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
गृहनगर | अहमदाबाद |
धर्म | जैनिज़्म |
जाति | जैन |
विक्रम साराभाई का जन्म
विक्रम साराभाई का जीवन परिचय-भारत में एक महान वैज्ञानिक डॉक्टर विक्रम साराभाई ने अहमदाबाद की धरती पर जन्म लिया, वह तिथि सन 1919 में अगस्त महीने की 12 तारीख थी.
विक्रम साराभाई का परिवार
पिता का नाम | अंबालाल साराभाई |
माता का नाम | सरलादेवी साराभाई |
भाई के नाम | सुहृद साराभाई एवं गौतम साराभाई |
बहनों के नाम | मृदुला, भारती, लीना, गीता, गिरा साराभाई |
पत्नी का नाम | मृणालिनी विक्रम साराभाई |
बेटे का नाम | कार्तिकेय साराभाई |
बेटी का नाम | मल्लिका साराभाई |
विक्रम साराभाई का परिवारिक जीवन
डॉक्टर साराभाई किसी ऐसे वैसे गरीब परिवार से नहीं बल्कि अहमदाबाद के एक सबसे बड़े उद्योगपति परिवार के सुपुत्र थे. उनके पिता अंबालाल साराभाई कई उद्योगों के मालिक थे. वे भारतीय स्वतंत्रता में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे चुके थे, साथ ही वह एक भारतीय वैज्ञानिक, भौतिक विज्ञानी और खगोल शास्त्र भी थे. डॉ विक्रम साराभाई की माता श्रीमती सरला देवी ने मांटेसरी पद्धति की प्रक्रिया का पालन करते हुए निजी स्कूल बनाया. उनका उद्देश्य केवल बच्चों के लिए पूरे संभव विकास का था, क्योंकि वे सिर्फ किताबी ज्ञान ही नहीं बल्कि बच्चों को और कई प्रकार की शिक्षा देना चाहती थी. विक्रम अपने आठ भाई बहनों में से एक इकलौते ऐसे थे, जिन्होंने भारत को सम्माननीय और गर्व से भरा देश बनाने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया
विक्रम साराभाई का शुरूआती जीवन एवं शिक्षा
विक्रम साराभाई का जीवन परिचय-बचपन से ही विज्ञान के प्रति उनका लगाव बहुत अधिक था, जिसने बाद में ऐसा रुप लिया कि वे भारत के महान वैज्ञानिक के रूप में उभर कर आए. विक्रम साराभाई ने अपनी शिक्षा भारत में ही रह कर नहीं बल्कि विदेशों में भी जाकर पूरी की. उन्होंने भारत में रहकर अपनी प्राथमिक एवं माध्यमिक परीक्षा उत्तीर्ण की, और फिर अपनी आगे की पढ़ाई यानि मैट्रिक्स की पढ़ाई के लिए कैंब्रिज विश्वविद्यालय के सेंट जॉन कॉलेज से जुड़ने के लिए इंग्लैंड पहुंच गए. विज्ञान के प्रति उनका गहरा जुड़ाव होने की वजह से अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद वे सन 1947 में भारत लौट आए. जब वे भारत लौटे थे उस समय भारत अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हुआ था. डॉ विक्रम साराभाई भारत के स्वतंत्रता सेनानी रह चुके कुछ प्रसिद्ध हस्तियों से प्रेरित हुए और उनके साथ उन्होंने अपने जीवन में बहुत बड़े-बड़े काम किए, जिनमें से मुख्य कृष्णमूर्ति, मोतीलाल नेहरू, श्रीनिवास, शास्त्री जवाहरलाल नेहरू, सरोजिनी नायडू, मौलाना आजाद, सीवी रमन और महात्मा गांधी जी आदि थे. इसके बाद वे एक नवीन प्रवर्तक उद्योगपति और दूरदर्शी भी बने.
विक्रम साराभाई का करियर
विक्रम साराभाई का जीवन परिचय-अपने करियर के आरंभिक काल में जब वे अपनी शिक्षा पूरी करके इंग्लैंड से भारत आए, तब विक्रम साराभाई ने अहमदाबाद में मौजूद शोध संस्थान को बंद कराने के लिए अपने दोस्तों और परिवार के सदस्यों को इकठ्ठा किया और धर्मार्थ ट्रस्ट को भी राजी किया कि उस शोध संस्थान को बंद कराया जाए. दरअसल वह शोध संस्थान उनके घर के पास ही था, जिसकी वजह से बहुत अत्यधिक प्रदूषण फैल रहा था. और फिर उन्होंने भारत में भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला स्थापित करने की योजना बनाई.
कुछ समय पश्चात डॉ साराभाई ने अहमदाबाद एजुकेशन सोसायटी में भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला के लिए एक छोटी सी जगह खरीद ली और उसमें अपने भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला का निर्माण कर दिया, जबकि वहीं दूसरी ओर एमजी कॉलेज ऑफ साइंस का निर्माण भी प्रगति पर था. एमजी कॉलेज ऑफ साइंस में दो छोटे कमरे अनुसंधान कार्यों के लिए तैयार किए गए. धीरे-धीरे जैसे ही उनका कार्य पूरा होता गया तो उन कमरो को योजनाबद्ध तरीके से भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला के रूप में बदल दिया गया. कुछ समय पश्चात और अधिक धन एकत्रित किया गया. और विज्ञान की ओर अपने करियर को आगे बढ़ाते चले गये
विक्रम साराभाई का व्यक्तिगत जीवन
विक्रम साराभाई का जीवन परिचय-विक्रम साराभाई का विवाह 1942 में हुआ. उन्होंने एक शास्त्रीय नृत्यांगना मृणालिनी के साथ विवाह किया और उसे अपना जीवनसाथी बनाया. उन दोनों की शादी भारत के चेन्नई शहर में हुई. बाद में उनके दो बच्चे भी हुए, जिसमें से बेटी का नाम मालिका और उनके बेटा कार्तिकेय था. बेटी ने अपने करियर में अभिनेत्री और प्रसिद्ध कार्यकर्ता के रूप में अपनी पहचान बनाई, वहीं उनका बेटा विज्ञान क्षेत्र में महारथ हासिल कर चुका था. हालांकि उनकी पत्नी मृणालिनी के साथ उनका वैवाहिक जीवन लंबे समय तक नहीं चल पाया. बाद में डॉक्टर कमला चौधरी के साथ उनके प्रेम संबंध रहे.
विक्रम साराभाई द्वारा की गई खोज और प्रयोग
विक्रम साराभाई द्वारा की गई कुछ खोज एवं उनके प्रयोग के बारे में जानकारी इस प्रकार हैं
विक्रम साराभाई का जीवन परिचय-साराभाई के मार्गदर्शन में पहला कॉस्मिक किरणों का निरीक्षण करने वाले नए दूरबीनो का निर्माण किया गया. वे दूरबीन कुछ इस प्रकार के थे, जिनसे गुलमर्ग जैसी विभिन्न स्थानों में से निकलने वाली कॉस्मिक विकर्ण की तीव्रता और उसके निरंतर बदलते हुए प्रभावों के बारे में पूरी और गहन जांच की जा सकती थी. जैसे-जैसे वे कॉस्मिक किरणों पर खोज करते रहे वैसे वैसे उनको और भी निरीक्षण करने के लिए कई तरह के औजारों की आवश्यकता होने लगी. विक्रम साराभाई ने अपने द्वारा बनाए गए छात्रों के समूह के साथ मिलकर कॉस्मिक विकिरण और गुलमर्ग जैसे विभिन्न स्थानों में आउटर दूरबीन का उपयोग करके कॉस्मिक किरणों के निरंतर बदलते रुझान का अवलोकन किया, और किरण की तीव्रता के लिए बड़ी संख्या में कॉस्मिक रे दूरबीन का निर्माण करना और उनकी स्थापना करना शुरु कर दिया. उन्होंने यह पूरी प्रक्रिया को अहमदाबाद से अलग त्रिवेंद्रम में अंजाम दिया.
भारत में कोई भी रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन नहीं था, डॉक्टर होमी भव एक ऐसी शख्सियत जिसे विज्ञान में होने वाले प्रत्येक परमाणु विज्ञान कार्यक्रम का जनक माना जाता है, उनके सहयोग से अपना पूर्ण समर्थन देते हुए डॉक्टर साराभाई ने भारत में पहला रॉकेट लॉन्च इंप्रेशन स्थापित किया. यह संस्थान अरब सागर के तट के पास थुम्बा, तिरुवंतपुरम में स्थापित किया गया था.
विक्रम साराभाई का जीवन परिचय-उन्होंने रुसी स्पूतनिक लांच के बाद भारत जैसे विकासशील देश में अंतरिक्ष की महत्वता को समझाया और सरकार को इस बात पर राजी किया कि भारत देश में भी अंतरिक्ष कार्यक्रम के महत्व पर जोर दिया जाना चाहिए. उसके बाद भारत में भारतीय अंतरिक्ष अनुसन्धान संगठन की शुरुआत की गई. और इसकी घोषणा साल 1969 के स्वतंत्रता दिवस के दिन की गई. इस संगठन को शुरू करने में सबसे अधिक महत्वपूर्ण योगदान डॉक्टर साराभाई का था, जिन्होंने ‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान’ नामक संगठन यानी इसरो (ISRO) की स्थापना स्वयं की थी.
नासा के साथ भी साराभाई के अच्छे तालमेल थे, जिनसे बातचीत करके और उनके साथ मिलकर उन्होंने सन 1975 से लेकर 1976 के दौरान सेटेलाइट सफल टेलिविजन एक्सपेरिमेंट लांच किया. बाद में उनके द्वारा एक अद्भुत भारतीय उपग्रह निर्माण की परियोजना भी शुरू कर दी गई. जिसके परिणाम स्वरुप पहला भारतीय उपग्रह आर्यभट्ट सन 1975 में एक रुसी कॉस्मोडरोम से कक्षा में रखा गया.
डॉक्टर विक्रम साराभाई का योगदान
डॉ साराभाई के नेतृत्व में अधिकांश महत्वपूर्ण संस्थानों की स्थापना भी की गयी जो निम्नलिखित है :-
सबसे पहला महत्वपूर्ण संस्थान भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला ही हैं, जिसकी नीव साराभाई के नेतृत्व में रखी गई जिसे अहमदाबाद में आज भी पहचाना जाता है
विक्रम साराभाई ने अहमदाबाद में ‘द अहमदाबाद टेक्सटाइल इंडस्ट्री रिसर्च एसोसिएशन’ की स्थापना में अपना योगदान दिया. और बाद में उन्होंने अहमदाबाद टैक्सटाइल रिसर्च इंडस्ट्री को पूरे भारत देश में फैलाने के लिए भी जोर दिया.
साराभाई द्वारा बहुत सी कामयाबियां प्राप्त की गई, जिसमें से एक कामयाबी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की शुरुआत भी थी. जिसने देश के विकास को कई मायने में बढ़ा दिया.
उसके बाद उन्होंने भारतीय प्रबंधन संस्थान भी बनाया. उसकी स्थापना भी डॉक्टर साराभाई के द्वारा की गई, इसको भी अहमदाबाद में ही स्थापित किया गया.
उनकी कई सारी उपलब्धियों में से एक यह भी थी कि वे विज्ञान से काफी हद तक जुड़े हुए थे, जिससे प्रेरित होकर उन्होंने अहमदाबाद में एक सामुदायिक विज्ञान केंद्र की नींव रखी. यह उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से स्थापित किया था. आज भी उस केंद्र को विक्रम साराभाई के नाम से ही पहचाना जाता है जिसका नाम ‘विक्रम साराभाई सामुदायिक विज्ञान केंद्र’ है.
उसके बाद उन्होंने अपनी पत्नी के साथ मिलकर डारपन एकेडमी फॉर पर्फोमेंस आर्ट्स की स्थापना की यह भी अहमदाबाद में ही स्थित है.
उसके कुछ समय पश्चात उन्होंने ‘विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र’ की भी नीव अपने हाथों से रखी. इस केंद्र को उन्होंने तिरुवनंतपुरम में ही निर्मित किया. बाद में अहमदाबाद में साराभाई द्वारा बनवाये गए छह संस्थानों को मिलाकर एक बहुत विशाल अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र बनाया गया.
साराभाई द्वारा ‘फास्ट टेस्ट रिऐक्टर’ का निर्माण भी किया गया, जो कल्पककम में स्थापित है.
कुछ समय पश्चात उनके द्वारा ‘चर ऊर्जा साइक्लोट्रॉन परियोजना’ में भी योगदान दिया गया, जो कलकत्ता में स्थापित है.
इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ECIL) का निर्माण भी उनके द्वारा हैदराबाद में कराया गया.
यूरेनियम कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (यूसीआईएल), जादुगुडा, बिहार में स्थापित की गई.
उन्होंने देश का पहला ‘बाजार अनुसंधान संगठन’ भी बनवाया जिसका नाम ऑपरेशन रिसर्च ग्रुप ही रखा गया.
इस तरह से उनके गहन अध्ययन ने धीरे-धीरे कई सारे अंतरिक्ष अध्ययन में अपना योगदान दिया. इसके अलावा उन्होंने कई सारे अनुसंधान को विकसित करने में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वे एक ऐसी सख्शियत थे, जिन्होंने भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी कई सारे संस्थानों की स्थापना में मदद की और कई सारे संस्थान स्वयं ही स्थापित किए.
डॉक्टर विक्रम साराभाई को इसरो का पिता क्यों कहा जाता हैं
विक्रम साराभाई का जीवन परिचय-नई सोच से उन्होंने भारतीय सरकार को इस बात का आश्वासन दिलाया कि भारत में अंतरिक्ष सेंटर होने से भारत के विकास को गति मिलेगी और हमारी आने वाली पीढ़ी अंतरिक्ष से जुड़ी बातों के बारे में आसानी से जान पाएगी जिसके लिए आवश्यक है कि भारत में एक स्पेस सेंटर खोला जाए. उनके विचारों से प्रभावित होकर भारतीय सरकार ने भारत में अंतरिक्ष सेंटर खोलने की अनुमति दी जिसकी वजह से डॉक्टर साराभाई को स्पेस सेंटर खोलने के लिए प्रेरणा मिली. स्पेस सेंटर की नीव रखने वाले डॉक्टर साराभाई को इसीलिए इसरो का पिता कहा जाता है.
डॉक्टर विक्रम साराभाई की विरासत
भारत से 22 जुलाई 2019 को पहला लेंडर रोवर बनाया गया और उसे चांद की ओर पहुंचाया गया, जो चांद पर खोज करने में सक्षम होता, इस रोवर का नाम विक्रम लैंडर रखा गया. विक्रम साराभाई को सम्मान देते हुए इसरो के जनक के नाम पर ही लेंडर का नामकरण किया गया.
तिरुवनंतपुरम में लांच होने वाले वाहन विकास के लिए विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर जो इसरो के लिए प्रमुख सुविधाएं उपलब्ध कराता है. इस सेंटर को भी विक्रम साराभाई के नाम से ही सम्मानित किया गया है.
भारतीय डाक विभाग द्वारा उनकी पहली पुण्यतिथि 30 दिसंबर 1972 पर उनकी याद में एक स्मारक डाक टिकट घर बनाया गया.
भारत में प्रत्येक वर्ष 12 अगस्त जो डॉक्टर साराभाई की जन्म तिथि है उस दिन को ‘अंतरिक्ष विज्ञान दिवस’ के रुप में मनाया जाता है.
डॉक्टर विक्रम साराभाई की मिले अवॉर्ड्स एवं उपलब्धियां
डॉ सारा भाई की नई औऱ प्रवर्तक सोच के साथ-साथ दूरदर्शी होने के लिए उन्हें भारत सरकार से सबसे बड़े सम्मानीय पुरस्कारों से भी मान दिया गया है. जिसमें से एक पद्म भूषण जो उन्हें सन 1966 में दिया गया और दूसरा पद्म विभूषण जो उन्हें सन 1972 में उनके मरणोपरांत दिया गया. इसके अलावा वे शांति स्वरुप भटनागर पुरस्कार से सम्मानित भी किए जा चुके हैं. आज भी वे भारत के सबसे महान वैज्ञानिको में से एक माने जाते हैं
डॉक्टर विक्रम साराभाई की मृत्यु एवं करण
डॉ साराभाई ने अपने कार्यकाल में बहुत बड़े-बड़े काम किए अंत में रूचि रॉकेट के लॉन्च के बाद ठीक उसी दिन पहले थुम्बा रेलवे स्टेशन की आधारशिला उन्होंने रखी थी. उसके बाद 30 दिसंबर 1971 को मात्र 52 साल की उम्र में हार्ट अटैक की वजह से अचानक उनकी मृत्यु हो गई.
डॉक्टर विक्रम साराभाई और कमला
विक्रम साराभाई का जीवन परिचय-विक्रम साराभाई और मृणालिनी साराभाई के बीच भले ही आपसी सहमति के साथ विवाह किया हुआ हो. लेकिन शादी के कुछ सालों के बाद दोनों में दूरियां आने लगी. दूरियां आने का मुख्या कारण था कमला चौधरी, जोकि मृणालिनी की दोस्त थी. लेकिन विक्रम साराभाई के कमला के साथ प्रेम संबंध बनने लगे जिसके चलते मृणालिनी को लगने लगा कि उन्हें वे दोनों मिलकर धोखा दे रहे हैं. इसके बाद मृणालिनी ने विक्रम साराभाई से अलग होने का फैसला किया किन्तु विक्रम साराभाई ने अपने रिश्ते बचाने की बहुत कोशिश की. अंततः उन्होंने भले ही तलाक़ न लिया हो लेकिन वे दोनों एक दुसरे से अलग हो गये थे
डॉक्टर साराभाई जैसे महान व्यक्ति देश में बहुत से हुए और आगे भी भविष्य में जरूर मिलेंगे, परंतु जो डॉक्टर साराभाई ने अपने कार्यकाल में किया ऐसे काम करना हर किसी व्यक्ति के बस की बात नही होती है. उनका पूरा जीवन और उनकी सोच आने वाली भावी पीढ़ी के लिए प्रेरणादायक जीवन है. यदि उनके जीवन से कोई प्रेरणा लेना चाहे तो जीवन में सफल व्यक्ति अवश्य बन सकता है. आज उनका नाम पूरा देश नहीं बल्कि पूरे विश्व में जाना जाता है क्योंकि उन्होंने अपने जीवन में ऐसी बड़ी बड़ी खोज की वजह से उन्होंने अपने जीवन को एक नई दिशा दी और साथ ही भारत को विकास के लिए एक नई खोज भी प्रदान की. उनके जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि के रूप में हमारे सामने भारत का स्पेस धवन सेंटर मौजूद है, जिसमें बड़े-बड़े वैज्ञानिकों द्वारा अंतरिक्ष और विज्ञान से जुड़ी बड़ी बड़ी खोज की जाती है
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