Saturday, May 4, 2024
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गद्य कविता के जनक बालकृष्ण भट्ट (Balkrishna Bhatt Biography in hindi)




गद्य कविता के जनक बालकृष्ण भट्हे-लो दोस्तों मेरा नाम मोहित है आज में आपको बालकृष्ण भट्ट के बारे में बताने जा रहा हु। बालकृष्ण भट्ट गद्य कविता के जनक रहे है। बालकृष्ण भट्ट एक नाटककार, पत्रकार, उपन्यासकार और निबन्धकार थे। भट्ट जी ने निबन्ध, उपन्यास और नाटकों की रचना करके हिन्दी को एक समर्थ शैली प्रदान की। वे पहले ऐसे निबन्धकार थे, जिन्होंने आत्मपरक शैली का प्रयोग किया था। उन्होने 32 वर्ष तक ‘हिन्दी प्रदीप’ का सम्पादन किया। पंडित मदन मोहन मालवीय और राजर्षि पुरुषोतम दास टंडन जैसी विभूतिया उनकी शिष्य रहे है।

गद्य कविता के जनक बालकृष्ण भट्हे-भारतेंदु हरिश्चंद्र की प्रेरणा से उन्होने 1877 में हिन्दी वर्धिनी सभा की स्थापना की । उनके छापे लेखों ने अंग्रेज़ नौकरशाही को नाराज किया। उन्हे चेतावनियां भी मिली। आखिर में उन्हे विवश होकर पत्रिका का चरित्र राजनीति से साहित्यिक करना पड़ा। अत्यंत व्यस्त रहते हुए भी उन्होने दस – बारह पुस्तके भी लिखी। बालकृष्ण भट्ट को हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेज़ी, बंगला और फ़ारसी आदि भाषाओं का काफी अच्छा ज्ञान भी था।

बालकृष्ण भट्ट का जन्म कब हुआ।

गद्य कविता के जनक बालकृष्ण भट्हे-बालकृष्ण भट्ट जी का जन्म 3 जून, 1844 ई. को प्रयाग, उत्तर प्रदेश (आधुनिक इलाहाबाद) में हुआ था। उनके पिता का नाम पंडित वेणी प्रसाद था। उनके पिता की शिक्षा की ओर विशेष रुचि रहती थी, साथ ही इनकी पत्नी भी एक विदुषी महिला थीं। अतः बालकृष्ण भट्ट की शिक्षा पर बाल्यकाल से ही विशेष ध्यान दिया गया।

बालकृष्ण भट्ट की शिक्षा।

गद्य कविता के जनक बालकृष्ण भट्हे-बालकृष्ण भट्ट  की प्रारंभिक शिक्षा घर से ही प्राप्त हुई। उन्हे घर पर संस्कृत की शिक्षा दी गयी और 15-16 वर्ष की अवस्था तक उनका यही क्रम चलता रहा। इसके बाद उन्होंने अपनी माता के आदेशानुसार स्थानीय मिशन के स्कूल में अंग्रेज़ी पढना शुरू किया और दसवीं कक्षा तक अध्ययन किया। विद्यार्थी जीवन में इन्हें बाईबिल परीक्षा में कई बार पुरस्कार भी प्राप्त हुए। मिशन स्कूल छोड़ने के बाद वे दोबारा संस्कृत, व्याकरण और साहित्य का अध्ययन करने लगे।

बालकृष्ण भट्ट का करियर।

गद्य कविता के जनक बालकृष्ण भट्हे-कुछ समय के लिए बालकृष्ण भट्ट ‘जमुना मिशन स्कूल में संस्कृत के अध्यापक के रूप में किया लेकिन अपने धार्मिक विचारों के कारण उन्हें पद त्याग करना पड़ा। विवाह हो जाने पर जब उन्हें अपनी बेकारी खलने लगी

गद्य कविता के जनक बालकृष्ण भट्हे-तब वे व्यापार करने की इच्छा से कलकत्ताभी गए परन्तु वहाँ से जल्दी ही लौट आये और संस्कृत साहित्य के अध्ययन तथा हिन्दी साहित्य की सेवा में जुट गए।

गद्य कविता के जनक बालकृष्ण भट्हे-वे स्वतंत्र रूप से लेख लिखकर हिन्दी साप्ताहिक और मासिक पत्रों में भेजने लगे तथा कई वर्ष तक प्रयाग में संस्कृत के अध्यापक रहे। भट्टजी प्रयाग से ‘हिन्दी प्रदीप’ मासिक पत्र का निरंतर घाटा सहकर 32 वर्ष तक उसका सम्पादन करते रहे। ‘हिन्दी प्रदीप’ बंद होने के बाद उन्होने काशी नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा आयोजित हिंदी शब्दसागर के संपादन में भी उन्होंने बाबू श्याम सुंदर दास तथा शुक्ल जी के साथ कार्य किया पर अस्वस्थता के कारण उन्हें यह कार्य भी छोड़ना पड़ा।



हिन्दी साहित्य में बालकृष्ण भट्ट जी का स्थान।

गद्य कविता के जनक बालकृष्ण भट्हे-गद्य काव्य की रचना सर्वप्रथम बालकृष्ण भट्ट ने प्रारंभ की थी। उनसे पूर्व तक हिन्दी में गद्य काव्य का नितांत अभाव था। बालकृष्ण भट्ट का हिन्दी के निबन्धकारों में महत्त्वपूर्ण स्थान है। निबन्धों के प्रारंभिक युग को निःसंकोच भाव से भट्ट युग के नाम से अभिहित किया जा सकता है। व्यंग्य विनोद संपन्न शीर्षकों और लेखों द्वारा एक ओर तो भट्टजी प्रताप नारायण मिश्र के निकट हैं और गंभीर विवेचन एवं विचारात्मक निबन्धों के लिए वे आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के निकट हैं।

गद्य कविता के जनक बालकृष्ण भट्हे-भट्टजी अपने युग के न केवल सर्वश्रेष्ठ निबन्धकार थे अपितु इन्हें सम्पूर्ण हिन्दी साहित्य में प्रथम श्रेणी का निबन्ध लेखक माना जाता है। उन्होंने साहित्यिक, सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, दार्शनिक, नैतिक और सामयिक आदि सभी विषयों पर विचार व्यक्त किये हैं। इन्होंने तीन सौ से अधिक निबन्ध लिखे हैं। उनके निबन्धों का कलेवर अत्यंत संक्षिप्त है तथा तीन पृष्ठों में ही समाप्त हो जाते हैं। उन्होंने मूलतः विचारात्मक निबन्ध ही लिखे हैं और इन विचारात्मक निबन्धों को चार श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है।

  • व्यावहारिक जीवन से सम्बंधित।
  • साहित्यिक विषयों से समबन्धित।
  • सामयिक विषयों से सम्बंधित।
  • हृदय की वृतियों पर आधारित।

बालकृष्ण भट्ट की कृतियाँ।

गद्य कविता के जनक बालकृष्ण भट्हे-भट्टजी ‘भारतेंदु युग’ की देन थे और भारतेंदु मंडली के प्रधान सदस्य थे। प्रयाग में उन्होंने ‘हिन्दी प्रवर्द्धिनी’ नामक सभा की स्थापना की थी और ‘हिन्दी प्रदीप’ नामक पत्र प्रकाशित करते रहे। इसी पत्र में इनके अनेक निबन्ध दृष्टिगोचर होते हैं। ‘हिन्दी साहित्य सम्मेलन’ प्रयाग ने इनके कुछ निबन्धों का संग्रह ‘निबन्धावली’ नाम से प्रकाशित भी करवाया था। उन्होने अत्यंत व्यस्त रहते हुए भी  दस – बारह पुस्तके भी लिखी। वे इस प्रकार है –



निबन्ध संग्रह

  • साहित्य सुमन
  • भट्ट निबन्धावली।उपन्यास
  • नूतन ब्रह्मचारी
  • सौ अजान एक सुजान।

नाटक

  • दमयंती स्वयंवर
  • बाल-विवाह
  • चंद्रसेन
  • रेल का विकट खेल।

अनुवाद

 

भट्ट जी ने बंगला तथा संस्कृत के नाटकों के अनुवाद भी किए जो इस प्रकार है –

बालकृष्ण भट्ट की भाषा।

भाषा की दृष्टि से अपने समय के लेखकों में बालकृष्ण भट्ट जी का स्थान बहुत ऊपर है। उन्होंने अपनी रचनाओं में यथाशक्ति शुद्ध हिंदी का प्रयोग किया। भावों के अनुकूल शब्दों का चुनाव करने में वे बड़े कुशल थे। कहावतों और मुहावरों का प्रयोग भी उन्होंने सुंदर ढंग से किया है। भट्ट जी की भाषा में जहाँ तहाँ पूर्वीपन की झलक मिलती है। जैसे- समझा-बुझा के स्थान पर समझाय-बुझाय लिखा गया है। बालकृष्ण भट्ट की भाषा को दो कोटियों में रखा जा सकता है।

गद्य कविता के जनक बालकृष्ण भट्हे-प्रथम कोटि की भाषा तत्सम शब्दों से युक्त है। द्वितीय कोटि में आने वाली भाषा में संस्कृत के तत्सम शब्दों के साथ-साथ तत्कालीन उर्दू, अरबी, फारसी तथा ऑंग्ल भाषीय शब्दों का भी प्रयोग किया गया है। वह हिन्दी की परिधि का विस्तार करना चाहते थे, इसलिए उन्होंने भाषा को विषय एवं प्रसंग के अनुसार प्रचलित हिन्दीतर शब्दों से भी समन्वित किया है। आपकी भाषा जीवंत तथा चित्ताकर्षक है। इसमें यत्र-तत्र पूर्वी बोली के प्रयोगों के साथ-साथ मुहावरों का प्रयोग भी किया गया है, जिससे भाषा अत्यन्त रोचक और प्रवाहमयी बन गई है।



बालकृष्ण भट्ट की मृत्यु।

गद्य कविता के जनक बालकृष्ण भट्हे-20 जुलाई, 1914 ई. को बालकृष्ण भट्ट ने अंतिम सांस ली।

आज इस आर्टिकल में हमने आपको बालकृष्ण भट्ट की जीवनी के बारे में जानकारी दी।

FAQ

Q. बाल कृष्ण भट्ट का जन्म कब हुआ था?

Ans.23 जून, 1844 प्रयागराज, उत्तर प्रदेश, भार

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