Wednesday, May 1, 2024
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भारत के राजस्थान में देवी माता के प्रसिद्ध के 9 अनोखे मंदिर ऐसा शक्ति पीठ जहां माता करती हैं अग्नि स्नान

भारत के राजस्थान में देवी माता के प्रसिद्ध के 9 अनोखे मंदिर  –हेलो दोस्तों मेरा नाम मोहित है आज में आपको प्रसिद्ध के 9 अनोखे मंदिर के बारे में बताने जा रहा हूँ नवरात्रि पर दैनिक भास्कर आपको राजस्थान के प्रसिद्ध माता के मंदिर के दर्शन करवा रहा है। इन मंदिरों की कई खूबियां हैं। उदयपुर के ईडाणा माता मंदिर में माता रानी अग्नि स्नान करती हैं तो बीकानेर के करणी माता मंदिर में हर वक्त हजारों की संख्या में चूहे घूमते रहते हैं। वहीं जैसलमेर का तनोट माता मंदिर यहां गिरे पाकिस्तानी बम नहीं फटने से दुनियाभर में अपनी अलग पहचान रखता है।

ईडाणा माता मंदिर, उदयपुर

Idana Mata Ji - ईडाणा माता जी, Maa Idana Rani - Idana Village, Salumber




मान्यताओं के अनुसार माता रानी के अग्नि स्नान दर्शन करने से लाइलाज बीमारी दूर हो जाती है।

मेवाड़ के सबसे प्रमुख शक्ति पीठों में से एक ईडाणा माता मंदिर में खुश होने पर माता स्वयं ही अग्नि स्नान करती हैं। यह मंदिर उदयपुर शहर से 60 किमी दूर कुराबड-बम्बोरा मार्ग पर अरावली की विस्तृत पहाड़ियों के बीच स्थित है। ईडाणा माता राजपूत समुदाय, भील आदिवासी समुदाय सहित संपूर्ण मेवाड़ की आराध्य मां हैं।

ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण महाभारत काल में हुआ था। कई रहस्यों को अपने अंदर समेटे हुए इस मंदिर में नवरात्र के दौरान भक्तों की भीड़ होती है। ईडाणा माता का अग्नि स्नान देखने के लिए हर साल भारी संख्या में भक्त यहां पहुंचते हैं। अग्नि स्नान की एक झलक पाने के लिए भक्त घंटों इंतजार करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इसी समय देवी का आशीर्वाद भक्तों को प्राप्त होता है। पुराने समय में ईडाणा माता को स्थानीय राजा अपनी कुलदेवी के रूप में पूजते हैं।

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करणी माता मंदिर, बीकानेर

Navratri 2022:चमत्कारी करणी माता का मंदिर, जहां 25 हजार से अधिक चूहे रहते हैं, मिलता है इनका जूठा प्रसाद - Navratri 2022 Facts About Karni Mata Temple Bikaner Of Rajasthan - Amar

करणी माता मंदिर देशभर में चूहों वाले मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है।

राजस्थान में प्रसिद्ध के 9 अनोखे मंदिर –बीकानेर के देशनोक में स्थित करणी माता का मंदिर दुनियाभर में प्रसिद्ध है। इस मंदिर में भक्तों से ज्यादा काले चूहे नजर आते हैं। वैसे यहां चूहों को ‘काबा’ कहा जाता है और इन काबाओं को बाकायदा दूध, लड्डू और अन्य खाने-पीने की चीजें परोसी जाती हैं। माना जाता है कि इस मंदिर में दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालुओं की हर मुराद पूरी होती है।

करणी माता के मंदिर को ‘चूहों वाली माता’ या ‘चूहों वाला मंदिर’ भी कहा जाता है। मंदिर में आने वाले भक्तों को चूहों का जूठा किया हुआ प्रसाद ही मिलता है। हैरान करने वाली बात यह है कि इतने चूहे होने के बाद भी मंदिर में बिल्कुल भी बदबू नहीं है। साथ ही यहां इनसे आज तक कोई भी बीमारी नहीं फैली। चूहों का जूठा प्रसाद खाने से कोई भी भक्त बीमार नहीं हुआ।

त्रिपुर सुंदरी मंदिर, बांसवाड़ा

Rajashtan Famous Mandir Darshan; Maa Tripura Sundari Temple, Sanwaliya Temple, Khatu Shyam Aarti Darshan | मां त्रिपुरा सुंदरी को पहनाई केसरिया रंग की पोशाक, किया श्रृंगार - Dainik Bhaskar

त्रिपुरा सुंदरी मंदिर में नरेंद्र मोदी से लेकर वसुंधरा राजे जैसे कई राजनेता दर्शन करने आते हैं।

भारत के राजस्थान में देवी माता के प्रसिद्ध के 9 अनोखे मंदिर  –त्रिपुर सुंदरी मंदिर बांसवाड़ा जिले से 19 किमी की दूरी पर स्थित है। यह मंदिर माता तुर्तिया के नाम से भी जाना जाता है। यहां काले पत्थर पर खुदी हुई देवी की एक मूर्ति, मंदिर में प्रतिष्ठित है। लोक कथाओं के अनुसार मंदिर कुषाण तानाशाह के शासन से भी पहले बनाया गया था। यह मंदिर एक शक्ति पीठ के रूप में प्रसिद्ध है। जो हिंदू, देवी शक्ति’ या देवी पार्वती की पूजा करते हैं, उनके लिए यह एक पवित्र स्थान है। यहां पांच फीट ऊंची मां भगवती त्रिपुर सुंदरी की मूर्ति अष्ठादश भुजाओं वाली है, जिसे चमत्कारी माना जाता है।

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मां भगवती त्रिपुर सुंदरी का सात दिनों में हर दिन के हिसाब से अलग-अलग श्रृंगार किया जाता है। सोमवार को सफेद रंग, मंगलवार को लाल रंग, बुधवार को हरा रंग, गुरुवार को पीला रंग, शुक्रवार को केसरिया, शनिवार को नीला रंग और रविवार को पंचरंगी में श्रृंगार किया जाता है। ऐसा भी कहा जाता है कि देवी मां के सिंह, मयूर कमलासिनी होने और तीन रूपों में कुमारिका, मध्यान्ह में सुंदरी यानी यौवना और संध्या में प्रौढ़ रूप में दर्शन देने से इन्हें त्रिपुर सुंदरी कहा जाता है।

शाकंभरी माता मंदिर, सांभर

Shakambari mandir-सांभर झील के पास माँ शाकंभरी का मंदिर मां शाकंभरी की कहानी » travfoodie

शाकंभरी मां ने गुस्से में आकर बेशकीमती संपदा को नमक में कर दिया था तब्दील।

राजस्थान में प्रसिद्ध के 9 अनोखे मंदिर –जयपुर से करीब 100 किलोमीटर दूर सांभर कस्बे में स्थित मां शाकंभरी मंदिर करीब 2500 साल पुराना बताया जाता है। शाकंभरी माता चौहान वंश की कुलदेवी है, लेकिन माता को अन्य कई धर्म और समाज के लोग भी पूजते हैं। शाकंभरी को दुर्गा का अवतार माना जाता है। शाकंभरी मां के देशभर में तीन शक्तिपीठ है। माना जाता है कि इनमें से सबसे प्राचीन शक्तिपीठ यहीं है। मां शाकंभरी की पौराणिक ग्रंथों में वर्णित कथा के अनुसार, एक समय जब पृथ्वी पर लगातार सौ वर्ष तक वर्षा नहीं हुई, तब अन्न-जल के अभाव में समस्त जीव भूख से व्याकुल होकर मरने लगे। उस समय मुनियों ने मिलकर देवी भगवती की उपासना की।


उपासना से खुश होकर दुर्गा जी ने एक नए रूप में अवतार लिया। उनकी कृपा से वर्षा हुई। इस अवतार में महामाया ने जलवृष्टि से पृथ्वी को हरी साग-सब्जी और फलों से परिपूर्ण कर दिया। शाक पर आधारित तपस्या के कारण शाकंभरी नाम पड़ा। इस तपस्या के बाद यह स्थान हराभरा हो गया, लेकिन समृद्धि के साथ ही यहां इस प्राकृतिक संपदा को लेकर झगड़े शुरू हो गए। जब समस्या ने विकट रूप ले लिया। तब मां ने यहां बहुमूल्य संपदा और बेशकीमती खजाने को नमक में बदल दिया। इस तरह से सांभर झील की उत्पत्ति हुई। वर्तमान में करीब 90 वर्गमील में यहां नमक की झील है।

तनोट माता मंदिर, जैसलमेर

Tanot Rai Mata Mandir: story of tanot mata mandir jaisalmer | अद्भुत हैं 'बम वाली' देवी, मां के चमत्कार देख झुक गया था पाकिस्तानी ब्रिगेडियर | Patrika News

तनोट माता मंदिर में आज भी सैकड़ों डिफ्यूज बम रखे हुए हैं।

देश का हर सैनिक तनोट माता की कृपा और चमत्कार से भली भांति वाकिफ है। माता की कृपा तो सदियों से भक्तों पर है, लेकिन 1965 की भारत और पाकिस्तान की जंग में माता ने अपने चमत्कार दिखाए। माता के मंदिर पर पाकिस्तानियों ने सैकड़ों बम गिराए लेकिन यह बम फटे नहीं। यह मंदिर जैसलमेर से करीब 130 किलो मीटर दूर भारत-पाकिस्तान बॉर्डर पर स्थित है। माता के इस चमत्कारिक मंदिर का निर्माण लगभग 1200 साल पहले हुआ था।

1965 की लड़ाई के बाद माता की प्रसिद्ध मंदिर विदेशों में भी छा गई। पाकिस्तानियों के मंदिर परिसर में गिरे 450 बम फटे ही नहीं। ये बम अब मंदिर परिसर में बने एक संग्रहालय में भक्तों के दर्शन के लिए रखे हुए हैं। 1965 की जंग के बाद इस मंदिर का जिम्मा सीमा सुरक्षा बल को दे दिया गया। इसके बाद से आज तक हर दिन भारतीय सेना के जवान ही मंदिर में पूजा अर्चना करते हैं।

जीण माता मंदिर, सीकर

एक हजार साल पुराना है भंवरो की देवी जीण माता का मंदिर - the temple of jeen mata the goddess of bhanwaro is a thousand years old

माता के चमत्कार के आगे औरंगजेब को भी टेकने पड़े थे घुटने।

राजस्थान में प्रसिद्ध के 9 अनोखे मंदिर –सीकर जिले के गोरिया गांव के दक्षिण मे पहाड़ों पर जीण माता का मंदिर है। जीण माता का वास्तविक नाम जयंती माता है। घने जंगल से घिरा हुआ मंदिर तीन छोटे पहाड़ों के संगम पर स्थित है। इस मंदिर में संगमरमर का विशाल शिव लिंग और नंदी प्रतिमा मुख्य आकर्षण है। इस मंदिर के बारे में कोई पुख्ता जानकारी उपलब्ध नहीं है। फिर भी पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता का मंदिर 1000 साल पुराना माना जाता है। जबकि कई इतिहासकार आठवीं सदी में जीण माता मंदिर का निर्माण काल मानते हैं।

लोक मान्यता के अनुसार, एक बार मुगल बादशाह औरंगजेब ने राजस्थान के सीकर में स्थित जीण माता और भैरों के मंदिर को तोड़ने के लिए अपने सैनिकों को भेजा। जीण माता ने अपना चमत्कार दिखाया और वहां पर मधुमक्खियों के एक झुंड ने मुगल सेना पर धावा बोल दिया था। मधुमक्खियों के काटे जाने से बेहाल पूरी सेना घोड़े और मैदान छोड़कर भाग खड़ी हुई। माना जाता है कि उस वक्त बादशाह की हालत बहुत गंभीर हो गई। तब बादशाह ने अपनी गलती मानकर माता को अखंड ज्योति जलाने का वचन दिया, हालांकि इसकी कोई पुष्टि नहीं करता।

शिला माता मंदिर, जयपुर

Despite the prohibition of entry, a large number of devotees who arrived in Amer, worshiped Shila Mata from Dehri. | प्रवेश निषेध के बावजूद बड़ी संख्या में आमेर पहुंचे श्रद्धालुओं ने शिला

जयपुर के राजा से रूठ गई थीं आमेर की शिला माता।

राजस्थान में प्रसिद्ध के 9 अनोखे मंदिर –राजस्थान का आमेर किला विश्व विरासत की सूची में शामिल है। आमेर की संरक्षक मानी जाने वाली देवी शिला माता मंदिर के लिए देश भर में प्रसिद्ध है। हिंदू देवी काली को समर्पित यह शिला देवी मंदिर आमेर किले के परिसर में ही स्थित है। कहा जाता है कि राजा मान सिंह काली माता के बहुत बड़े भक्‍त थे। वह इस मूर्ति को बंगाल से लेकर आए थे। पूरे मंदिर के निर्माण में सफेद संगमरमर का उपयोग किया गया है। इसे देखने के लिए दुनियाभर से लोग आते हैं।

आमेर में प्रतिष्ठापित शिला देवी की प्रतिमा के टेढ़ी गर्दन को लेकर भी एक किवदंती प्रचलित है। कहा जाता है की माता राजा मानसिंह से वार्तालाप करती थी। यहां देवी को नर बलि दी जाती थी, लेकिन एक बार राजा मानसिंह ने माता से वार्तालाप के दौरान नरबलि की जगह पशु बलि देने की बात कही। इससे माता रुष्ट हो गईं। गुस्से से उन्होंने अपनी गर्दन मानसिंह की ओर से दूसरी ओर मोड़ ली। तभी से इस प्रतिमा की गर्दन टेढ़ी है। माता के गर्दन के ऊपर पंचलोकपाल बना हुआ है, जिसमें ब्रह्मा, विष्णु, महेश, गणेश और कार्तिके के छोटी-छोटी प्रतिमा बनी हुई है।

चामुंडा माता मंदिर, जोधपुर

Chamunda Mata Temple Jodhpur (Timings, History, Entry Fee, Images, Aarti, Location & Phone) - Jodhpur Tourism 2023

मान्यता के अनुसार साल 1965 युद्ध के दौरान चामुंडा मां ने चील बनकर जोधपुर के बाशिंदों की जान बचाई थी।



मेहरानगढ़ किले के अंत में स्थित, चामुंडा माता मंदिर जोधपुर के सबसे पुराने और सबसे प्रतिष्ठित मंदिरों में से एक है। देवी को जोधपुर के निवासियों की मुख्य देवी माना जाता है। उन्हें ‘इष्ट देवी’ और राजपरिवार की देवी माना जाता है। ये हिंदुओं का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। माना जाता है कि चामुंडा माता राव जोधा की पसंदीदा देवी थीं, इसलिए उनकी मूर्ति को 1460 में मेहरानगढ़ किले में पूरी धार्मिक प्रक्रिया के साथ स्थापित किया गया था।

कैला देवी मंदिर, करौली

भारत के राजस्थान में देवी माता के प्रसिद्ध के 9 अनोखे मंदिर

कैला देवी को देशभर में भगवान कृष्ण की बहन के रूप में भी पूजा जाता है।

भारत के राजस्थान में देवी माता के प्रसिद्ध के 9 अनोखे मंदिर  –

कैला देवी मंदिर भारत के राजस्थान के करौली जिले में स्थित एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है। देवी कैला देवी को समर्पित, यह मंदिर एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है और हर साल हजारों भक्तों को आकर्षित करता है, खासकर वार्षिक कैला देवी मेले के दौरान। यह मंदिर त्रिकुट की पहाड़ियों में कालीसिल नदी के किनारे स्थित है, जो एक सुरम्य वातावरण प्रदान करता है जो इसके आध्यात्मिक माहौल को और बढ़ाता है।

अपने धार्मिक महत्व के अलावा, मंदिर ऐतिहासिक और स्थापत्य महत्व भी रखता है। मंदिर परिसर में जटिल नक्काशी और विस्तृत कलाकृति राजस्थानी मंदिर वास्तुकला की समृद्ध विरासत को दर्शाती है। वर्षों से, मंदिर न केवल एक आध्यात्मिक केंद्र रहा है बल्कि क्षेत्र में सांस्कृतिक गतिविधियों और परंपराओं का केंद्र बिंदु भी रहा है।

हर साल, मंदिर के आसपास कैला देवी मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें देश भर से तीर्थयात्री और पर्यटक आते हैं। सांस्कृतिक कार्यक्रमों, पारंपरिक खेलों और स्थानीय हस्तशिल्प स्टालों से भरा यह मेला क्षेत्र की परंपराओं और जीवनशैली का एक जीवंत चित्र प्रदान करता है। यह आस्था, उत्सव और सांस्कृतिक समृद्धि का मिश्रण है, जो कैला देवी मंदिर को राजस्थान में अवश्य देखने योग्य स्थानों में से एक बनाता है।

 

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