Wednesday, October 16, 2024
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जानिए 2023 गोपाष्टमी पूजा का रहस्यमयी रूप पूजा विधि कथा और महत्व के साथ एक नए दृष्टिकोण से

2023 गोपाष्टमी पूजा का रहस्यमयी –हेलो दोस्तों मेरा नाम मोहित है आज में आपको गोपाष्टमी पूजा के बारे में बताने जा रहा हूँ “भारत में गाय माता को सामान्यत: देवी के समान माना जाता है। यहाँ यह माना जाता है कि सभी देवी-देवता गौ माता के रूप में समाहित रहते हैं, और उनकी पूजा से सभी को फल प्राप्त होता है। गोपाष्टमी पर्व पर भगवान कृष्ण और गौ माता की पूजा और उपवास किया जाता है। हिन्दू धर्म में गाय को माता के समान माना जाता है, और पुराणों ने इसे पुष्टि की है। भगवान श्री कृष्ण और बलराम का बचपन गोकुल में बीता था, जो ग्वालों की नगरी थी। ग्वाल यानी गाय पालक ने उन्हें गाय की सेवा और रक्षा का प्रशिक्षण दिया था। गोपाष्टमी के एक दिन पहले, इन दोनों ने गाय पालन का सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त किया था।



गोपाष्टमी 2023 कब मनाई जाती हैं

2023 गोपाष्टमी पूजा का रहस्यमयी –यह पूजा एवम उपवास कार्तिक शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन होता हैं, इस दिन गौ माता की पूजा की जाती हैं. कहते हैं इस दिन तक श्री कृष्ण एवं बलराम ने गाय पालन की सभी शिक्षा ले कर, एक अच्छे ग्वाला बन गए थे. वर्ष 2023 में गोपाष्टमी 20 नवंबर को मनाई जायेगी.

अष्टमी तिथि शुरू 20 नवंबर को शाम 05:21 बजे से
अष्टमी तिथि समाप्त 21 नवंबर को रात्रि 03:16 बजे तक

गोपाष्टमी पर्व का महत्व

हिन्दू संस्कृति में गाय का विशेष स्थान हैं. माँ का दर्जा दिया जाता हैं क्यूंकि जैसे एक माँ का ह्रदय कोमल होता हैं, वैसा ही गाय माता का होता हैं. जैसे एक माँ अपने बच्चो को हर स्थिती में सुख देती हैं, वैसे ही गाय भी मनुष्य जाति को लाभ प्रदान करती हैं. गाय का दूध, गाय का घी, दही, छांछ यहाँ तक की मूत्र भी मनुष्य जाति के स्वास्थ्य के लिए लाभदायक हैं. इसे कर्तव्य माना जाता हैं कि गाय की सुरक्षा एवम पालन किया जाये. गोपाष्टमी हमें इसी बात का संकेत देती हैं कि पुरातन युग में जब स्वयं श्री कृष्ण ने गौ माता की सेवा की थी, तो हम तो कलयुगी मनुष्य हैं. यह त्यौहार हमें बताता हैं कि हम सभी अपने पालन के लिये गाय पर निर्भर करते हैं इसलिए वो हमारे लिए पूज्यनीय हैं. सभी जीव जंतु वातावरण को संतुलित रखने के लिए उत्तरदायी हैं, इस प्रकार सभी एक दुसरे के ऋणी हैं और यह उत्सव हमें इसी बात का संदेश देता हैं.

गोपाष्टमी कैसे शुरू हुई उसके पीछे एक पौराणिक कथा हैं. किस प्रकार भगवान कृष्ण ने अपनी बाल लीलाओं में गौ माता की सेवा की उसका वर्णन भी इस कथा में हैं.

गोपाष्टमी पर्व की कथा

गोपाष्टमी से जुडी कई कथाये प्रसिद्ध है, जो इस प्रकार है:

कथा 1 (Story 1): जब कृष्ण भगवान ने अपने जीवन के छठे वर्ष में कदम रखा. तब वे अपनी मैया यशोदा से जिद्द करने लगे कि वे अब बड़े हो गये हैं और बछड़े को चराने के बजाय वे गैया चराना चाहते हैं. उनके हठ के आगे मैया को हार माननी पड़ी और मैया ने उन्हें अपने पिता नन्द बाबा के पास इसकी आज्ञा लेने भेज दिया. भगवान कृष्ण ने नन्द बाबा के सामने जिद्द रख दी, कि अब वे गैया ही चरायेंगे. नन्द बाबा ने गैया चराने के लिए पंडित महाराज को मुहूर्त निकालने कह दिया. पंडित बाबू ने पूरा पंचाग देख लिया और बड़े अचरज में आकर कहा कि अभी इसी समय के आलावा कोई शेष मुहूर्त नही हैं अगले बरस तक. शायद भगवान की इच्छा के आगे कोई मुहूर्त क्या था. वह दिन गोपाष्टमी का था. जब श्री कृष्ण ने गैया पालन शुरू किया. उस दिन माता ने अपने कान्हा को बहुत सुन्दर तैयार किया. मौर मुकुट लगाया, पैरों में घुंघरू पहनाये और सुंदर सी पादुका पहनने दी लेकिन कान्हा ने वे पादुकायें नहीं पहनी. उन्होंने मैया से कहा अगर तुम इन सभी गैया को चरण पादुका पैरों में बांधोगी, तब ही मैं यह पहनूंगा. मैया ये देख भावुक हो जाती हैं और कृष्ण बिना पैरों में कुछ पहने अपनी गैया को चारण के लिए ले जाते.


2023 गोपाष्टमी पूजा का रहस्यमयी –इस प्रकार कार्तिक शुक्ल पक्ष के दिन से गोपाष्टमी मनाई जाती हैं. भगवान कृष्ण के जीवन में गौ का महत्व बहुत अधिक था. गौ सेवा के कारण ही इंद्र ने उनका नाम गोविंद रखा था. इन्होने गाय के महत्व को सभी के सामने रखा. स्वयं भगवान ने गौ माता की सेवा की.

कथा 2 (Story 2): कहा जाता है कृष्ण जी ने अपनी सबसे छोटी ऊँगली से गोबर्धन पर्वत को उठा लिया था, जिसके बाद से उस दिन गोबर्धन पूजा की जाती है. ब्रज में इंद्र का प्रकोप इस तरह बरसा की लगातार बारिश होती रही, जिससे बचाने के लिए कृष्ण ने जी 7 दिनन तक पर्वत को अपनी एक ऊँगली में उठाये रखा था. गोपाष्टमी के दिन ही भगवान् इंद्र ने अपनी हार स्वीकार की थी, जिसके बाद श्रीकृष्ण ने गोबर्धन पर्वत नीचे रखा था.

कथा 3: गोपाष्टमी ने जुड़ी एक बात और ये है कि राधा भी गाय को चराने के लिए वन में जाना चाहती थी, लेकिन लड़की होने की वजह से उन्हें इस बात के लिए कोई हाँ नहीं करता था. जिसके बाद राधा को एक तरकीब सूझी, उन्होंने ग्वाला जैसे कपड़े पहने और वन में श्रीकृष्ण के साथ गाय चराने चली गई.

कृष्ण जी के हर मंदिर में इस दिन विशेष आयोजन होते है. वृन्दावन, मथुरा, नाथद्वारा में कई दिनों पहले से इसकी तैयारी होती है. नाथद्वारा में 100 से भी अधिक गाय और उनके ग्वाले मंदिर में जाकर पूजा करते है. गायों को बहुत सुंदर ढंग से सजाया जाता है.

गोपाष्टमी पूजा विधि

  • इस दिन गाय की पूजा की जाती हैं. सुबह जल्दी उठकर स्नान करके गाय के चरण स्पर्श किये जाते हैं.
  • गोपाष्टमी की पूजा पुरे रीती रिवाज से पंडित के द्वारा कराई जाती है.
  • सुबह ही गाय और उसके बछड़े को नहलाकर तैयार किया जाता है. उसका श्रृंगार किया जाता हैं, पैरों में घुंघरू बांधे जाते हैं,अन्य आभूषण पहनायें जाते हैं.
  • गाय माता की परिक्रमा भी की जाती हैं. सुबह गायों की परिक्रमा कर उन्हें चराने बाहर ले जाते है.
  • इस दिन ग्वालों को भी दान दिया जाता हैं. कई लोग इन्हें नये कपड़े दे कर तिलक लगाते हैं.
  • शाम को जब गाय घर लौटती है, तब फिर उनकी पूजा की जाती है, उन्हें अच्छा भोजन दिया जाता है. खासतौर पर इस दिन गाय को हरा चारा खिलाया जाता हैं.
  • जिनके घरों में गाय नहीं होती है वे लोग गौ शाला जाकर गाय की पूजा करते है, उन्हें गंगा जल, फूल चढाते है, दिया जलाकर गुड़ खिलाते है.
  • औरतें कृष जी की भी पूजा करती है, गाय को तिलक लगाती है. इस दिन भजन किये जाते हैं. कृष्ण पूजा भी की जाती हैं.
  • गाय को हरा मटर एवं गुड़ खिलाया जाता है.
  • कुछ लोग गौशाला में खाना और अन्य समान का दान भी करते है.
  • इस दिन स्कॉन टेम्पल को खूब सजाया जाता हैं. उसमे नाच गाना और भव्य जश्न होता हैं.

2023 गोपाष्टमी पूजा का रहस्यमयी –गौ माता का हिन्दू संस्कृति में अधिक महत्व हैं. पुराणों में गाय के पूजन, उसकी रक्षा, पालन,पोषण को मनुष्य का कर्तव्य माना गया हैं. हम सभी को गौ माता की सेवा करना चाहिये, क्यूंकि वह भी हमें एक माँ  की तरह ही पालन करती हैं.

FAQ

Q : गोपाष्टमी कब होती है ?

Ans : दीवाली के बाद वाली अष्टमी को

Q : गोपाष्टमी 2023 में कब है ?

Ans : 20 नवंबर

Q : गोपाष्टमी का शुभ मुहूर्त क्या है ?

Ans : जल्द ही

Q : गोपाष्टमी का त्यौहार किसको समर्पित है ?

Ans : भगवान श्रीकृष्ण एवं गायों को

Q : गोपाष्टमी का त्यौहार कहां ज्यादा धूम धाम से मनाया जाता है ?

Ans : वृन्दावन एवं ब्रज में




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