क्या है मुहर्रम ताजिया कर्बला –हेलो दोस्तों मेरा नाम मोहित है आज में आपको मुहर्रम ताजिया के बारे में बताने जा रहा हु। मुहर्रम शहादत का त्यौहार माना जाता हैं इसका महत्व इस्लामिक धर्म में बहुत अधिक होता हैं. यह इस्लामिक कैलंडर का पहला महिना होता हैं इसे पूरी शिद्दत के साथ अल्लाह के बन्दों को दी जाने वाली शहादत के रूप में मनाया जाता हैं.यह पवित्र महीने रमजान के बाद पवित्र महिना माना जाता हैं. इस्लाम में भी चार महीनो को महान माना जाता हैं. मुहर्रम के दिनों में भी कई मुस्लिम उपवास करते हैं.
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मुहर्रम एवम अशुरा के दिन को क्यों मनाया जाता है
क्या है मुहर्रम ताजिया कर्बला –यह मुहर्रम हिजरी संवत का पहला महिना हैं. इसे शहीद को दी जाने वाली शहादत के रूप में मनाया जाता हैं. इस माह के 10 दिन तक पैगम्बर मुहम्मद साहब के वारिस इमाम हुसैन की तकलीफों का शोक मनाया जाता है, लेकिन बाद में इसे, जंग में दी जाने वाली शहादत के जश्न के तौर पर मनाया जाता हैं और ताजिया सजाकर इसे जाहिर किया जाता हैं. इन दस दिनों को इस्लाम में आशुरा (Day Of Ashura) कहा जाता हैं.
कब मनाया जाता हैं मुहर्रम
मुहर्रम के दस दिन आशुरा के तौर पर मनाये जाते हैं. इस पुरे महीने शहादत के रूप में मनाये जाते हैं और इन दिनों रोजा रखने का महत्त्व होता हैं. वर्ष 2023 में मुहर्रम 28 या 29 जुलाई को मनाया जायेगा.
मुहर्रम का इतिहास एवम कर्बला की कहानी
यह एक दर्दनाक कहानी है, लेकिन इसे बहादुरी की मिसाल के तौर पर देखा जा सकता हैं.
यह समय सन् 60 हिजरी का था. कर्बला जिसे सीरिया के नाम से जाना जाता था. वहाँ यजीद इस्लाम का शहनशाह बनना चाहता था, जिसके लिए उसने आवाम में खौफ फैलाना शुरू कर दिया. सभी को अपने सामने गुलाम बनाने के लिए उसने यातनायें दी. यजीद पुरे अरब पर अपना रुतबा चाहता था, लेकिन उसके तानाशाह के आगे हजरत मुहम्मद का वारिस इमाम हुसैन और उनके भाईयों ने घुटने नहीं टेके और जमकर मुकाबला किया. बीवी बच्चो को हिफाज़त देने के लिए इमाम हुसैन मदीना से इराक की तरफ जा रहे थे. तब ही यजीद ने उन पर हमला कर दिया. वो जगह एक गहरा रेगिस्तान थी, जिसमे पानी के लिए बस एक नदी थी, जिस पर यजीद ने अपने सिपाहियों को तैनात कर दिया था. फिर भी इमाम और उसके भाईयों ने डटकर मुकाबला किया. वे लगभग 72 थे, जिन्होंने 8000 सैनिको की फोज़ को दातों तले चने चबवा दिये थे. ऐसा मुकाबला दिया कि दुश्मन भी तारीफ करने लगे. लेकिन वे जीत नही सकते थे, वे सभी तो कुर्बान होने आये थे. दर्द, तकलीफ सहकर भूखे प्यासे रहकर भी उन्होंने लड़ना स्वीकार किया और यह लड़ाई मुहर्रम 2 से 6 तक चली आखरी दिन इमाम ने अपने सभी साथियों को कब्र में सुलाया, लेकिन खुद अकेले अंत तक लड़ते रहे. यजीद के पास कोई तरकीब न बची और उनके लिए इमाम को मारना नामुमकिन सा हो गया. मुहर्रम के दसवे दिन जब इमाम नमाज अदा कर रहे थे, तब दुश्मनों ने उन्हें धोखे से मारा. इस तरह से यजीद इमाम को मार पाया, लेकिन हौसलों के साथ मरकर भी इमाम जीत का हकदार हुआ और शहीद कहलाया. तख्तो ताज जीत कर भी ये लड़ाई यजीद के लिए एक बड़ी हार थी.
उस दिन से आज तक मुहर्रम के महीने को शहीद की शहादत के रूप में याद करते हैं.
मुहर्रम का तम क्या हैं
मुहर्रम का पैगाम शांति और अमन ही हैं. युद्ध रक्त ही देता हैं. कुर्बानी ही मांगता हैं लेकिन धर्म और सत्य के लिए घुटने न टेकने का सन्देश भी मुहर्रम देता हैं. लड़ाई का अंत तकलीफ देता हैं इसलिए यह दिन अमन और शांति का पैगाम देते हैं.
मुहर्रम कैसे मनाते हैं
क्या है मुहर्रम ताजिया कर्बला –इसे पाक महिना माना जाता हैं. इस दिन को शिद्दत के साथ सभी इस्लामिक धर्म को मानने वाले मनाते हैं.
इस दस दिनों में रोजे भी रखे जाते हैं.इन्हें आशुरा कहा जाता हैं.
कई लोग पुरे 10 दिन रोजा नहीं करते. पहले एवम अंतिम दिन रोजा रखा जाता हैं.
इसे इबादत का महिना कहते हैं. हजरत मुहम्मद के अनुसार इन दिनों रोजा रखने से किये गए बुरे कर्मो का विनाश होता हैं.अल्लाह की रहम होती हैं. गुनाह माफ़ होते हैं.
मुहर्रम ताजिया क्या हैं
यह बाँस से बनाई जाती हैं, यह झाकियों के जैसे सजाई जाती हैं. इसमें इमाम हुसैन की कब्र को बनाकर उसे शान से दफनाने जाते हैं. इसे ही शहीदों को श्रद्धांजलि देना कहते हैं,, इसमें मातम भी मनाया जाता हैं लेकिन फक्र के साथ शहीदों को याद किया जाता हैं
यह ताजिया मुहर्रम के दस दिनों के बाद ग्यारहवे दिन निकाला जाता है, इसमें मेला सजता हैं. सभी इस्लामिक लोग इसमें शामिल होते हैं और पूर्वजो की कुर्बानी की गाथा ताजियों के जरिये आवाम को बताई जाती है. जिससे जोश और हौसले की कहानी जानकर वे अपने पूर्वजो पर फर्क महसूस कर सके.
मुहर्रम शायरी
कर्बला की शहादत इस्लाम बना गई
खून तो बहा था लेकिन हौसलों की उड़ान दिखा गई..
इमाम का हौसला
इस्लाम जगा गया
अल्लाह के लिए उसका फर्ज
आवाम को धर्म सिखा गया
कर्बला की उस ज़मी पर खून बहा
कत्लेआम का मंज़र सजा
दर्द और दुखों से भरा था जहां
लेकिन फौलादी हौसलों को शहीद का नाम मिला
न हिला पाया वो रब की मैहर को
भले जीत गया वो कायर जंग
पर जो मौला के दर पर बैखोफ शहीद हुआ
वही था असली सच्चा पैगम्बर
मुहर्रम में याद करो वो कुर्बानी
जो सिखा गया सही अर्थ इस्लामी
न डिगा वो हौसलों से अपने
काटकर सर सिखाई असल जिंदगानी
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FAQ
Q : मुहर्रम 2023 में कब है ?
Ans : 28 या 29 जुलाई
Q : मुहर्रम कब मनाया जाता है ?
Ans : हिजरी संवत का पहला महिना
Q : मुहर्रम कैसा त्यौहार है ?
Ans : इसे शहादत के दिन के रूप में मनाते हैं.
Q : मुहर्रम में लोग क्या करते हैं ?
Ans : इस दिन ताजिया निकलते हैं, साथ ही सवारी भी निकलती है.
Q : मुहर्रम का त्यौहार कितने दिनों का त्यौहार होता है ?
Ans : 10 दिन का
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