15 संविधान निर्माण Full Notes In Hindi – भारत का संविधान, जिसे भारत का मूल कानून भी कहा जाता है, भारत की सर्वोच्च कानूनी दस्तावेज है। यह भारत के लोगों द्वारा बनाई गई एक संधि है जो भारत को एक लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में स्थापित करती है। संविधान निर्माण की प्रक्रिया 1946 में शुरू हुई, जब भारत सरकार अधिनियम, 1935 के तहत एक संविधान सभा का गठन किया गया था। संविधान सभा में 389 सदस्य थे, जिनमें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, मुस्लिम लीग, और अन्य राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि शामिल थे।
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संविधान निर्माण
संविधान सभा ने 2 वर्ष, 11 महीने, और 18 दिन तक बैठक की और 26 नवंबर, 1949 को संविधान को अपनाया। संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ, जो भारत की स्वतंत्रता की वर्षगांठ है। संविधान सभा का गठन 1946 में, भारत सरकार अधिनियम, 1935 के तहत एक संविधान सभा का गठन किया गया था। संविधान सभा में 389 सदस्य थे, जिनमें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, मुस्लिम लीग, और अन्य राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि शामिल थे।
संविधान के प्रमुख प्रावधान
भारत का संविधान एक लंबा और जटिल दस्तावेज है। इसमें कई प्रावधान हैं जो भारत के लोगों और सरकार के अधिकारों और जिम्मेदारियों को निर्धारित करते हैं।
- भारत एक लोकतांत्रिक गणराज्य है: भारत का संविधान भारत को एक लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में स्थापित करता है। इसका मतलब है कि भारत में सरकार जनता द्वारा चुनी जाती है।
- भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है: भारत का संविधान भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य के रूप में स्थापित करता है। इसका मतलब है कि भारत में सभी धर्मों को समान अधिकार हैं।
- भारत में नागरिकों को समान अधिकार हैं: भारत का संविधान भारत के नागरिकों को समान अधिकार प्रदान करता है। इन अधिकारों में जीवन, स्वतंत्रता, और संपत्ति का अधिकार शामिल है।
- भारत में एक स्वतंत्र न्यायपालिका है: भारत का संविधान भारत में एक स्वतंत्र न्यायपालिका की स्थापना करता है। इसका मतलब है कि न्यायपालिका सरकार से स्वतंत्र है और कानूनों का पालन करने के लिए सरकार को बाध्य कर सकती है।
संविधान निर्माण का महत्व
15 संविधान निर्माण Full Notes In Hindi – भारत का संविधान भारत के लिए एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। यह भारत को एक लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में स्थापित करता है और भारत के लोगों और सरकार के अधिकारों और जिम्मेदारियों को निर्धारित करता है। संविधान निर्माण एक जटिल और चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया थी। हालांकि, संविधान सभा ने एक संविधान तैयार किया जो भारत के लिए एक मजबूत नींव प्रदान करता है।
संविधान निर्माण कब हुआ
भारत का संविधान, जिसे भारत का मूल कानून भी कहा जाता है, भारत की सर्वोच्च कानूनी दस्तावेज है। यह भारत के लोगों द्वारा बनाई गई एक संधि है जो भारत को एक लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में स्थापित करती है।
15 संविधान निर्माण Full Notes In Hindi – संविधान निर्माण की प्रक्रिया 1946 में शुरू हुई, जब भारत सरकार अधिनियम, 1935 के तहत एक संविधान सभा का गठन किया गया था। संविधान सभा में 389 सदस्य थे, जिनमें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, मुस्लिम लीग, और अन्य राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि शामिल थे। संविधान सभा ने 2 वर्ष, 11 महीने, और 18 दिन तक बैठक की और 26 नवंबर, 1949 को संविधान को अपनाया। संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ, जो भारत की स्वतंत्रता की वर्षगांठ है।
संविधान के संशोधन
संविधान में संशोधन करने की शक्ति संसद के पास है। संविधान में अब तक 104 संशोधन किए गए हैं। संशोधन के माध्यम से, संविधान को भारत के सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक परिदृश्य के साथ समायोजित किया गया है। भारत का संविधान भारत के लिए एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। यह भारत को एक लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में स्थापित करता है और भारत के लोगों और सरकार के अधिकारों और जिम्मेदारियों को निर्धारित करता है।
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उधेड़न यंत्र का दौर
उधेड़न यंत्र का दौर एक ऐसा काल था जब भारत में उद्योगों और कारखानों में काम करने वाले मजदूरों के बीच संघर्ष और हिंसा आम थी। यह दौर 19वीं सदी के अंत से 20वीं सदी के मध्य तक चला। उधेड़न यंत्र का मुख्य कारण औद्योगिक क्रांति था। औद्योगिक क्रांति के दौरान, भारत में कई नए उद्योग और कारखाने स्थापित हुए। इन उद्योगों और कारखानों में काम करने वाले मजदूरों को बहुत कम वेतन दिया जाता था और उन पर बहुत काम कराया जाता था। इन मजदूरों को अक्सर खराब काम करने की स्थिति में काम करना पड़ता था और उन्हें सुरक्षा के कोई अधिकार नहीं थे।
उधेड़न यंत्र के परिणाम
- मजदूरों के बीच असंतोष: उधेड़न यंत्र ने मजदूरों के बीच असंतोष को जन्म दिया। मजदूरों ने अपनी स्थिति में सुधार के लिए संघर्ष करना शुरू किया।
- हिंसा: उधेड़न यंत्र के कारण मजदूरों और मालिकों के बीच हिंसा आम हो गई। मजदूरों ने अपने अधिकारों के लिए कई हड़तालें और आंदोलन किए।
- कानूनों में बदलाव: उधेड़न यंत्र के कारण सरकार को मजदूरों के अधिकारों की रक्षा के लिए कई कानून बनाने पड़े।
उधेड़न यंत्र के प्रमुख आंदोलन
- 1884 का बंबई मिल हड़ताल: यह भारत का पहला बड़ा श्रमिक आंदोलन था। इस आंदोलन में बंबई के मिल मजदूरों ने अपने वेतन में वृद्धि और काम के घंटों में कमी की मांग की थी।
- 1905 का पूना मिल हड़ताल: यह उधेड़न यंत्र के दौर का एक और महत्वपूर्ण आंदोलन था। इस आंदोलन में पूना के मिल मजदूरों ने अपने वेतन में वृद्धि और काम के घंटों में कमी की मांग की थी।
- 1920 का मद्रास मिल हड़ताल: यह उधेड़न यंत्र के दौर का सबसे बड़ा आंदोलन था। इस आंदोलन में मद्रास के मिल मजदूरों ने अपने वेतन में वृद्धि, काम के घंटों में कमी, और सुरक्षा के अधिकारों की मांग की थी।
उधेड़न यंत्र का अंत
उधेड़न यंत्र का अंत धीरे-धीरे हुआ। सरकार ने मजदूरों के अधिकारों की रक्षा के लिए कई कानून बनाए। इन कानूनों ने मजदूरों के जीवन और कार्य स्थितियों में सुधार किया। इसके अलावा, मजदूरों की शिक्षा और जागरूकता में वृद्धि हुई। इन कारकों ने उधेड़न यंत्र के अंत में मदद की।उधेड़न यंत्र का भारत के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। इसने भारत में श्रमिक आंदोलन को जन्म दिया और मजदूरों के अधिकारों के लिए लड़ाई छेड़ी। उधेड़न यंत्र ने भारत में श्रमिक वर्ग की स्थिति में सुधार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई
संविधान सभा के सबसे महत्वपूर्ण सदस्यों के विचार एवं संविधान निर्माण में उनकी भूमिका
भारतीय संविधान सभा का गठन 1946 में किया गया था। संविधान सभा में 389 सदस्य थे, जिनमें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, मुस्लिम लीग, और अन्य राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि शामिल थे। संविधान सभा ने 2 वर्ष, 11 महीने, और 18 दिन तक बैठक की और 26 नवंबर, 1949 को संविधान को अपनाया। संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ, जो भारत की स्वतंत्रता की वर्षगांठ है।
डॉ. भीमराव आंबेडकर
डॉ. भीमराव आंबेडकर संविधान सभा के अध्यक्ष थे। उन्होंने संविधान के मसौदे को तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। डॉ. आंबेडकर ने संविधान में मौलिक अधिकारों और मूल कर्तव्यों को शामिल करने का प्रस्ताव रखा था। उन्होंने संविधान में एक समान नागरिक संहिता की भी वकालत की थी।
डॉ. आंबेडकर के विचारों ने संविधान निर्माण को एक महत्वपूर्ण दिशा दी। उन्होंने संविधान को एक ऐसा दस्तावेज बनाने का प्रयास किया जो सभी भारतीय नागरिकों के अधिकारों और स्वतंत्रता की रक्षा करे।
सरदार वल्लभभाई पटेल
सरदार वल्लभभाई पटेल संविधान सभा के सदस्य थे। उन्होंने संविधान निर्माण के दौरान संघीय व्यवस्था को मजबूत बनाने का प्रयास किया। उन्होंने राज्यों के बीच शक्तियों के बंटवारे के लिए एक योजना तैयार की थी।सरदार पटेल के विचारों ने संविधान में एक मजबूत केंद्र सरकार की स्थापना में मदद की। उन्होंने संविधान को एक ऐसा दस्तावेज बनाने का प्रयास किया जो भारत को एक अखंड राष्ट्र बनाए रख सके।
जवाहरलाल नेहरू
जवाहरलाल नेहरू संविधान सभा के सदस्य थे। उन्होंने संविधान में एक समाजवादी व्यवस्था की स्थापना का प्रस्ताव रखा था। उन्होंने संविधान में आर्थिक और सामाजिक न्याय के प्रावधानों को शामिल करने का प्रयास किया।नेहरू के विचारों ने संविधान को एक सामाजिक लोकतंत्र बनाने में मदद की। उन्होंने संविधान को एक ऐसा दस्तावेज बनाने का प्रयास किया जो भारत में सभी लोगों के जीवन को बेहतर बनाए।
मौलाना अबुल कलाम आजाद
मौलाना अबुल कलाम आजाद संविधान सभा के सदस्य थे। उन्होंने संविधान में धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को शामिल करने का प्रयास किया। उन्होंने संविधान में सभी धर्मों के समान अधिकारों को सुनिश्चित करने का प्रयास किया।मौलाना आजाद के विचारों ने संविधान को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य बनाने में मदद की। उन्होंने संविधान को एक ऐसा दस्तावेज बनाने का प्रयास किया जो भारत में सभी धर्मों के लोगों के लिए समान अधिकार और स्वतंत्रता सुनिश्चित करे।
महात्मा गांधी
महात्मा गांधी संविधान सभा के सदस्य नहीं थे, लेकिन उन्होंने संविधान निर्माण पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला। गांधीजी ने संविधान में अहिंसा और सत्य के सिद्धांतों को शामिल करने का प्रयास किया। उन्होंने संविधान में ग्राम स्वराज के सिद्धांत को भी शामिल करने का प्रयास किया। गांधीजी के विचारों ने संविधान को एक शांतिपूर्ण और न्यायपूर्ण समाज बनाने में मदद की। उन्होंने संविधान को एक ऐसा दस्तावेज बनाने का प्रयास किया जो भारत में सभी लोगों के जीवन को बेहतर बनाए।
- डॉ. राजेंद्र प्रसाद
- सरदार हुकम सिंह
- श्रीमती सरोजिनी नायडू
- श्री के. एम. मुंशी
- श्री एन. गोपालस्वामी आयंगर
- श्री टी. टी. कृष्णमाचारी
- श्री वी. टी. कृष्णमाचारी
- श्री के. टी. शाह
15 संविधान निर्माण Full Notes In Hindi- इन सभी सदस्यों ने संविधान निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके विचारों और कार्यों ने संविधान को एक ऐसा दस्तावेज बनाया जो भारत के लिए एक मजबूत नींव प्रदान करता है।
FAQs
Q विभाजन के मुख्य कारण क्या हैं?
भारत का विभाजन विभिन्न राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक कारकों का परिणाम था।
Q विभाजन क्यों और कैसे हुआ?
भारत और पाकिस्तान के बीच की सीमारेखा लंदन के वकील सर सिरिल रैडक्लिफ ने तय की। हिन्दू बहुमत वाले इलाके भारत में और मुस्लिम बहुमत वाले इलाके पाकिस्तान में शामिल किए गए। 18 जुलाई 1947 को ब्रिटिश संसद ने भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम पारित किया जिसमें विभाजन की प्रक्रिया को अंतिम रूप दिया गया।
Q भारत के विभाजन से आप क्या समझते हैं?
भारत का विभाजन माउण्टबेटन योजना के आधार पर किया गया था। इसके लिए भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 बनाया गया था। इस अधिनियम में कहा गया था कि 15 अगस्त 1947 को भारत व पाकिस्तान नामक दो स्वतंत्र देश बना दिए जाएंगे। और ब्रिटिश सरकार उन्हें सत्ता सौंप देगी।